श्री महालक्ष्मी ह्रदय स्तवः | Lakshmi Hridaya Stava Stotram |


श्री महालक्ष्मी ह्रदय स्तवः

श्री महालक्ष्मी ह्रदय स्तवः | Lakshmi Hridaya Stava Stotram |
श्री महालक्ष्मी ह्रदय स्तवः 

लक्ष्मीजी का ह्रदय है यह स्तोत्र 
शुक्रवार की रात को करे यह साधना 
सिर्फ एक बार पाठ करने से मनुष्य धनवान बन जाता है  
किसी भी शुक्रवार की रात्रि को इस स्तोत्र के सिर्फ सौबार पाठ करने 
से पाठक ( पाठ करनेवाला साधक ) धनी ( धनवान )  होता है |
श्री महालक्ष्मी ह्रदय स्तवः 
श्रीमत् सौभाग्य जननीं स्तौमि लक्ष्मीं सनातनीम् | 
सर्वकाम फलावाप्ति साधनैक सुखावहाम् || 

श्रीवैकुण्ठ स्थितेलक्ष्मी समागच्छ ममाग्रतः | 
नारायणेंन सह माँ कृपा दृष्टयावलोकय || 

सत्यलोक स्थितेलक्ष्मी त्वं समागच्छ सन्निधिम् | 
वासुदेवेन सहिता प्रसीद वरदा भव || 

श्वेतद्वीप स्थितेलक्ष्मी शीघ्रमागच्छ सुव्रते | 
विष्णुना सहिते देवि जगन्मातः प्रसीद में || 

क्षीराब्धि संस्थिते लक्ष्मी समागच्छ स माधवे |
त्वत् कृपा दृष्टि सुधया सततं मां विलोकय || 

रत्नगर्भ स्थिते लक्ष्मि परिपूर्णं हिरण्मयी |
समागच्छ समागच्छ स्थित्वा सु पुरतो मम || 

स्थिरा भव महालक्ष्मी निश्चला भव निर्मले | 
प्रसन्ने कमले देवि प्रसन्ना वरदा भव || 

श्रीधरे श्रीमहाभूते त्वदन्तस्य महानिधिम् | 
शीघ्रमुद् धृत्य पुरतः प्रदर्शय समर्पय || 

वसुन्धरे श्रीवसुधे वसुदोघ्रे कृपामयि | 
त्वत्  कुक्षिगतं सर्वंस्वं शीघ्रं में त्वं प्रदर्शय || 

विष्णुप्रिये रत्नगर्भे समस्त फलदे शिवे | 
त्वत् गर्भ गत हेमादीन् सम्प्रदर्शय दर्शय || 

अत्रोपविश्य लक्ष्मि त्वं स्थिरा भव हिरण्मयी | 
सुस्थिरा भव सुप्रीत्या प्रसन्ना वरदा भव || 

सादरे मस्तकं हस्तं मम तव कृपयाऽर्पय | 
सर्वराज गृहेलक्ष्मी त्वत् कलामयि तिष्ठतु || 

यथा वैकुण्ठ नगरे यथैव क्षीरसागरे | 
तथा मद्भवने तिष्ठ स्थिरं श्रीविष्णुना सह || 

आद्यादि महालक्ष्मि विष्णु वामाङ्क  संस्थिते |
प्रत्यक्षं कुरु में रूपं रक्ष मां शरणागतम् || 

समागच्छ महालक्ष्मि धन धान्य समन्विते | 
प्रसीद पुरतः स्थित्वा प्रणतं मां विलोकय || 

दयासु दृष्टिं कुरुतां मयि श्रीः | 
सुवर्ण दृष्टिं कुरु में गृहे श्रीः || 

|| फलश्रुतिः || 
महालक्ष्मी समुद्दिश्य निशि भार्गव वासरे | 
इदं श्रीहृदयँ जप्त्वा शतवारं धनी भवेत् || 

|| श्री लक्ष्मीहृदयँ स्तवः सम्पूर्णं || 


karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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