श्री सांपुटिक श्री सूक्त | घोर दरिद्रता निवारण उपाय | Samputik Shri Sukta | Shri Sukta |


श्री सांपुटिक श्री सूक्त

एक ऐसा प्रयोग जो दरिद्रता निवारण के लिये रामबाण प्रयोग है जिसके पाठ मात्र से जन्मो जन्म की दरिद्रता का विनाश हो जाता है | 
इस सूक्तम का कपि अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं है फिर भी चाहो तो कर सकते हो किन्तु प्रतिदिन सिर्फ एक पाठ मात्र से ही दरिद्रता का विनाश हो जाता है | 

प्रतिदिन या हर शुक्रवार को दाड़िम के रस से और 
द्राक्षारस से इस सम्पुटित श्रीसूक्त का एक या १६ पाठ से अभिषेक करे | 
ये सर्वोत्तम उपाय है माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कर के दरिद्रता का विनाश करने का |

घोर दरिद्रता निवारण उपाय | Samputik Shri Sukta | Shri Sukta |
सम्पुटिक श्रीसूक्त 

सम्पुटिक श्रीसूक्त क्या है ?
यह सूक्त तीनसौ गुना फलदेने वाला है क्युकी इस श्रीसूक्त को 
दुर्गासप्तशती के चतुर्थ अध्याय के "दुर्गे स्मृता हरसि" मंत्र  के साथ लक्ष्मी जी का मूल सत्ताईस अक्षरों वाला मंत्र 
"ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः" इस मंत्र के साथ श्रीसूक्त के हर एक मन्त्र को सम्पुटित किया गया है इसलिये इस सूक्त की शक्ति तीनसौ गुना बढ़ जाती है | 

इस सूक्त की खासियत यह है की इसमें नाही विनियोग-न्यास-संकल्प आदि करने की जरुरत है यह सिर्फ पाठ करने मात्र से ही फल देने लगता है | अगर आप ज्यादा दरिद्रता से झूझ रहे हो तो प्रतिदिन ९ पाठ करे | पूर्ण श्रद्धा भक्ति युक्त करे | 
अवश्य फल देंगा | 



ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसिभीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजाम् | 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसिभीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभं ददासि | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | 
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसीभीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् | 
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां  ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् | 
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहो पह्वये श्रियम् || 


दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियम लोके देवजुष्टामुदाराम् | 
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथबिल्वः | 
तस्यफलानि तपसानुदन्तु मायान्त रायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह | 
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् | 
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात् || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणिम् |
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ||

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि | 
पशूनां रूप मन्नस्य मयी श्रीः श्रयतां यशः || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयी संभव कर्दम | 
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या 
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् में गृहे |
नि च देविं मातरं श्रियं वासय में कुले || 


दरिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्दचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ आर्द्रां यः करिणिं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् | 
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ आर्द्रां पुष्करिणिं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् | 
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह || 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् 
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान विन्देयं पुरुषानहम् ||  

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि | 
ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहम् | 
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्री कामः सततं जपेत् ||

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता | 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः | 
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि || 

|| श्री महालक्ष्म्यार्पणं अस्तु || 
|| अस्तु || 
|| जय श्री कृष्ण || 

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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