नैवेद्य के पात्र | Yagya me Naivedhya kis Patra me Rakhna chahiye ?

 

यज्ञादि में नैवेद्य के पात्र 

नैवेद्य के पात्र



तैजसेषु च पात्रेषु सौवर्णे राजते तथा | 
ताम्रे वा प्रस्तरे वापि पद्मपत्रेऽथवा पुनः || 
यज्ञादारुमये वापि नैवेद्यं स्थापयेद् बुधः | 
सर्वाभार्व च माहेये स्वहस्तघटिते यादि || 
विद्वान को चाहिए धातुनिर्मित पत्रों में से सुवर्णपात्र में, 
चाँदी के पात्र में अथवा तांबे के पात्र में नैवेद्य रक्खे, 
उक्त धातुमय पात्रों के अभाव में पत्थर के बने हुए पात्र में या कमल के पत्ते में अथवा पलाश आदि यज्ञीय वृक्षों के पात्रों में नैवेद्य रक्खे | 
पूर्वोक्त पत्रों में से किसी का भी संभव न हो तो अपने हाथ से निर्मित मिट्टी के पात्र में नैवेद्य रक्खे | 

यज्ञादि में नैवेद्य के स्थापन का क्रम 
नैवेद्यं दक्षिणे भागे पुरतो व न पृष्ठतः | 
दक्षिणं तु परित्यज्य वामे चैव निधापयेत् || 
अभोज्यं तद् भवेदन्नं पानीयं च सुरोपमम् | 
नैवेद्य भगवान् की प्रतिमा के दाहिनी ओर रखना 
उचित है सामने अथवां पीछे रखना उचित नहीं है | 
दक्षिण ओर छोड़ कर बाईं ओर कदापि न रक्खे | 
बाईं ओर रक्खा हुआ नैवेद्य अभोज्य हो जाता है 
और जल सुरा के तुल्य हो जाता है | 

देव निर्माल्य त्याग का दोष 
निवेदितं च यद्द्रव्यं भोक्तव्यं तद्विधानतः | 
तन्न चेद् भुज्यते मोहाद् भोक्तुमायान्ति देवताः || 
देवता के लिए निवेदित नैवेद्य आदि पदार्थ का विधिपूर्वक भोजन करना चाहिये, यदि कोई मोहवश उसका भक्षण न करे तो देवता उसे खाने को आते हैं | 

|| अस्तु || 
  
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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