ललिता कवच | Lalita Kavach |

 

ललिता कवच

ललिता कवच


|| श्री भैरव उवाच ||
देवदेव महादेव भक्तानां प्रीति वर्द्धन |
सूचितं यत् त्वया देव्याः कवचं कथयस्व मे || १ ||

|| श्री भैरव उवाच ||

श्रुणु देवि, प्रवक्ष्यामि कवचं देव दुर्लभम् |
अप्रकाश्यं परं गुह्यं साधकाभीष्ट सिद्धिदम् || २ ||

|| विनियोगः ||

अस्य श्री बाला त्रिपुरसुन्दरी कवचस्य श्री दक्षिणामूर्तिः ऋषिः, पंक्तिश्छन्दः, श्रीबाला त्रिपुर सुन्दरी देवता, ऐं बीजं, सौः शक्तिः, क्लीं कीलकं, चतुर्वर्ग साधने पाठे विनियोगः |

|| ऋष्यादि न्यास ||

श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि |
पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे, श्रीबाला त्रिपुर सुन्दरी देवतायै नमो हृदि, ऐं बीजाय नमो गुह्ये, सौः शक्तये नमो नाभौ, क्लीं बीजाय नमः पादयोः, चतुर्वर्ग पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गेषु |

षडङ्ग न्यासः
कर न्यासः
अङ्ग न्यासः
ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः
हृदयाय नमः
क्लीं तर्जनीभ्यां नमः
शिरसे स्वाहा
ऐं अनामिकाभ्यां नमः
कवचाय हुं 
क्लीं  कनिष्ठिकाभ्यां नमः
नेत्र त्रयाय वौषट्
सौः कर तल कर पृष्ठाभ्यां
अस्त्राय फट्

ध्यानम्

मुक्ता शेखर कुणडलाङ्गद मणि ग्रैवेय हारोर्मिका,
विद्योतद् वलयादि कङ्कण कटि सूत्रां स्फुरन् नूपुराम |

मणिक्योदर बन्ध कम्बु कबरीमिन्दोः कलां विभ्रतीं,
पाशं चांकुश पुस्तकाक्ष वलयं दक्षोर्घ्व बाह्वादितः ||

अर्थात्
भगवती बाला मोतियों से जड़े हुए चमकीले कुण्डल, अंगद, हार, वलय, कंगन, करधनी आदि आभूषण और पैर में गुंजायमान नूपुर धारण किए हैं |
केश पाश पर चन्द्रमा की कला शोभा पा रही है |
दाएँ ऊर्ध्व हाथ से चार कर कमलों में क्रमशः पाशः, अंकुश, पुस्तक और
अक्ष माला लिए हैं |

|| कवच प्रारम्भ ||

ऐं वाग्भवं पातु शीर्षं क्लीं कामस्तु तथा हृदि |
सौः शक्ति बीजं च पातु नाभौ गुह्ये च पादयोः || १ ||
वाग्भव बीज ऐं सिर की, काम बीज क्लीं हृदय की और
शक्ति बीज सौः नाभि की, गुह्य तथा पैरों की रक्षा करें |

ऐं क्लीं सौः वदने पातु बाला मां सर्व सिद्धये |
हसकलह्रीं सौः पातु भैरवी कण्ठ देशतः || २ ||
ऐं क्लीं सौः बाला मुख मण्डल में सर्व सिद्धियों के किए मेरी रक्षा करें |
हसकलह्रीं सौः भैरवी कण्ठ देश में रक्षा करें |

सुन्दरी नाभि देशेऽव्याच्छीर्षिका सकला सदा |
भ्रू नासयोरन्तराले महा त्रिपुर सुन्दरी || ३ ||
सुन्दरी नाभि देश में सकला शीर्ष भाग में और भौंहों तथा 
नाक के मध्य भाग में
महा त्रिपुरी सुन्दरी सदा रक्षा करें |

ललाटे सुभगा पातु भगा मां कण्ठ देशतः |
भगा देवी तु हृदये उदरे भग सर्पिणी || ४ ||
ललाटे में सुभगा कण्ठ देश में भगा हृदय में भगवती देवी और
उदर में भग सर्पिणी मेरी रक्षा करें |

भग माला नाभि देशे लिङ्गे पातु नमोभवा |
गुह्ये पातु महादेवी राज राजेश्वरी शिवा || ५ ||
नाभि देश में भग माला और लिंग, योनि में मनोभवा मेरी रक्षा करें |
गुह्य में महा देवी राज राजेश्वरी शिवा रक्षा करें |

चैतन्य रूपिणी पातु पादयोर्जगदम्बिका |
नारायणी सर्व गात्रे सर्व कार्ये शुभङ्करी || ६ ||
दोनों पैरों में चैतन्य रूपिणी जगदम्बिका सारे शरीर में नारायणी और सभी कार्यों में शुभङ्करी रक्षा करें |

ब्रह्माणी पातु मां पूर्वे दक्षिणे वैष्णवी तथा |
पश्चिमे पातु वाराही उत्तरे तु महेश्वरी || ७ ||
ब्रह्माणी पूर्व दिशा में और वैष्णवी दक्षिण दिशा में मेरी रक्षा करें |
वाराही पश्चिम दिशा में और महेश्वरी उत्तम दिशा में रक्षा करें |

आग्नेय्यां पातु कौमारी महा लक्ष्मीश्च नैरृते |
वायव्यां पातु चामुण्डा इन्द्राणी पातु चेशके || ८ ||
कौमारी आग्नेय कोण में और महा लक्ष्मी नैऋत कोण में रक्षा करें |
चामुण्डा वायव्य कोण में और इन्द्राणी ईशान कोण में रक्षा करें |

जले पातु महा माया पृथिव्यां सर्व मङ्गला |
आकाशे पातु वरदा सर्वतो भुवनेश्वरी || ९ ||
महा माया जल में और सर्व मङ्गला पृथ्वी पर रक्षा करें |
वरदा आकाश में और भुवनेश्वरी सभी ओर रक्षा करें |

|| फल श्रृति ||

इदं तू कवचं नाम देवानामपि दुर्लभम् |
पठेत् प्रातः समुत्थाय शुचिः प्रयत मानसः || १० ||
यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है |
प्रातःकाल उठकर पवित्र हो एकाग्र मन से इसका पाठ करना चाहिए |

नाधयो व्याधयस्तस्य न भयं क्वचिद् भवेत् |
न च मारी भयं तस्य पातकानां भयं तथा || ११ ||
पाठ करनेवाले को आधि व्याधियाँ नहीं होतीं, 
न कहीं किसी प्रकार का भय होता है |
उसे न महा मारी का डर रहता है, न पापों का |

न दारिद्र्यवशं गच्छेत् तिष्ठेन्मृत्यु वशे न च |
गच्छेच्छिव पुरे देवि सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ||
वह दरिद्रता के वश में कभी नहीं होता और न मृत्यु के वशीभूत होता है |
शिव के स्थान को ही वह प्राप्त होता है, यह मैं सर्वथा सत्य कहता हूँ |

इदं कवचमज्ञात्वा श्रीविद्यां यो जपेच्छिवे |
स नाप्नोति फलं तस्य प्राप्नुयाच्छस्त्र घातनम् ||
इस कवच को जाने बिना जो श्रीविद्या के मन्त्र का जप करता है,
उसे उस जप का फल नहीं मिलता,
उल्टे वह किसी शस्त्र की चोट का भागी बन जाता है |

|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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