श्री अन्नपूर्णाका माहात्म्य | Shree Annpurna ka Mahatmya |

 

श्री अन्नपूर्णाका माहात्म्य

श्री अन्नपूर्णा माहात्म्य


लालची ललात, बिललात द्वार द्वार दीन,
बदन मलीन, मन मिटै ना बिसूरना |
तारक सराध, कै बिबाह, कै उछाह कछू,
डोलै लोल बुझत सबद ढोल तूरना ||

प्यासेहूँ न पावै बारी, भूखे न चनक चारि,
चाहत अहारन पहार, दारि घूर ना |
सोकको अगार, दुखभार भरो तौलौं जन
जौलौं देबी द्रवै न भवानी अन्नपूरना ||

जबतक देवी अन्नपूर्णा कृपा नहीं करतीं, तभतक मनुष्य लालची होकर लालायित होता है और दीन तथा मलिनमुख हो द्वार द्वार पर बिलबिलाता रहता है,
परंतु उसके मनकी चिन्ता दूर नहीं होती,
कहीं श्राद्ध, विवाह अथवा कोई उत्सव तो नहीं, इस बातमें रहता है,
चंचल होकर इधर उधर घूमता है और यदि कहीं ढोलका शब्द होता है तो पूछता है कि यहाँ कोई उत्सव तो नहीं है ?
पीस लगनेपर उसे जल नहीं मिलता, भूख लगनेपर चार चने भी नहीं मिलते |
पहाड़के समान भोजनकी इच्छा होती है, परंतु घूरेपर पड़ी दाल भी नहीं मिलती |
इस प्रकार वह शोकका आश्रय स्थान और दुःखके भारसे दबा रहता है |

|| अस्तु ||
Chalo satsang kariye

આચાર્ય શ્રી આનંદકુમાર પાઠક સાહિત્યાચાર્ય-સંસ્કૃતમાં B.a-M.a ૨૫ વર્ષની અવિરત યાત્રા બ્રહ્મરત્ન પુરસ્કાર વિજેતા - ૨૦૧૫ શાસ્ત્રી - આચાર્ય - ભૂષણ - વિશારદ કર્મકાંડ ભૂષણ -કર્મકાંડ વિશારદ જ્યોતિષ ભૂષણ - જ્યોતિષ વિશારદ

Post a Comment

Previous Post Next Post