शालिग्रामशिलाकी महिमा | Shaligram shila mahima |

 

शालिग्रामशिलाकी महिमा

शालिग्रामशिलाकी महिमा



श्रीपार्वतीजीने पूछा -
प्रभो विश्वेश्वर, श्रेष्ठ भक्त्तिका क्या स्वरुप है,
जिसके जाननेमात्रसे मनुष्योंको सुख प्राप्त होता है ?

महादेवजी बोले -
देवि, भक्ति तीन प्रकारकी बतायी गयी है |
सात्त्विक, राजसी और तामसी |
इनमें सात्त्विक उत्तम, राजसी मध्यम और तामसी कनिष्ठ है |
मोक्षरुप फलकी इच्छा रखनेवाले पुरुषोंको श्रीहरिकी उत्तम भक्ति करनी चाहिये |
अहङ्कारको लेकर या दूसरोंको दिखानेके लिये अथवा ईर्ष्यावश या दूसरोंका संहार करनेकी इच्छासे जो किसी देवताकी भक्ति की जाती है,
वह तामसी बतायी गयी है |
जो विषयोंकी इच्छा रखकर अथवा यज्ञ और ऐश्वर्यकी प्राप्तिके लिये भगवान् की पूजा करता है, उसकी भक्ति राजसी मानी गयी है |
ज्ञान परायण ब्राह्मणोंको कर्म बन्धनका नाश करनेके लिये श्रीविष्णुके प्रति आत्मसमर्पणकी बुद्धि करनी चाहिये | यही सात्त्विकी भक्ति भक्ति है |
अतः देवि, सदा सब प्रकारसे श्रीहरिका सेवन करना चाहिये |
तामसभावसे तामस, राजससे राजस और सात्त्विकसे सात्त्विक गति प्राप्ति होती है |
भगवान् गोविन्दमें भक्त्ति रखनेवाले पुरुषोंको समस्त देवता प्रसन्नतापूर्वक शान्ति देते है, ब्रह्मा आदि देवेश्वर उनका मङ्गल करते हैं और
प्रधान प्रधान मुनीश्वर उन्हें कल्याण प्रदान करते हैं |
जो भगवान् गोविन्दमें भक्ति रखते हैं,
उनके लिये भूत पिशाचोंसहित समस्त ग्रह शुभ हो जाते है |
ब्रह्मा आदि देवता उनपर प्रसन्न होते है तथा इनके घरोंमें लक्ष्मी सदा स्थिर रहती है |
भगवान् गोविन्दमें भक्ति रखनेवाले मानवोंके शरीरमें सदा गङ्गा, गया, नैमिषारण्य, काशी, प्रयाग और कुरुक्षेत्र आदि तीर्थ निवास करते हैं |

इस प्रकार विद्वान् पुरुष भगवती लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णुकी आराधना करे |
जो ऐसा करता है, वह ब्राह्मण सदा कृतकृत्य होता है |
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है |
पार्वती, क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्र ही क्यों न हो, जो भगवान् विष्णुकी विशेषरुपसे
भक्ति करता है, वह निस्सन्देह मुक्त हो जाता है |

पार्वतीजीने पूछा -
सुरेश्वर, इस पृथ्वीपर शालिग्रामशिलाकी विशुद्ध मूर्तियाँ बहुत सी हैं,
उनमेंसे कितनी मूर्तियोंको पूजनमें ग्रहण करना चाहिये |

महादेवजी बोले -
देवि, जहाँ शालिग्रामशिलाकी मूर्ति सदा विराजमान रहती है,
उस घरको वेदोंमें सब तीर्थोंसे श्रेष्ठ बताया गया है |
ब्राह्मणोंको पाँच, क्षत्रियोंको चार, वैश्योंको तीन और शूद्रोंको एक ही
शालिग्राममूर्तिका यत्नपूर्वक पूजन करना चाहिये |
ऐसा करनेसे वे इस लोकमें समस्त भोगोंका उपभोग करके अन्तमें भगवान् विष्णुके सनातन धामको जाते हैं |
यह शालिग्रामशिला भगवान् की सबसे बड़ी मूर्ति है, जो पूजन करनेपर सदा पापोंका अपहरण करनेवाली और मोक्षरुप फल देनेवाली है |
जहाँ शालिग्रामशिला विराजती है, वहाँ गङ्गा, यमुना, गोदावरी और सरस्वती सभी तीर्थ निवास करते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है |
अतः मुक्तिकी इच्छा रखनेवाले पुरुषोंको इसका भलीभाँति पूजन करना चाहिये |
देवेश्वरि, जो भक्त्तिभावसे जनार्दनका पूजन करते हैं,
उनके दर्शनमात्रसे ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध हो जाता है |
पितर सदा यही बातचीत किया करते हैं कि हमारे कुलमें वैष्णव पुत्र उत्पन्न हों,
जो हमारा उद्धार करके हमें विष्णुधाममें पहुँचा सकें |
वही दिवस धन्य है, जिसमें भगवान् विष्णुका पूजन किया जाय और उसी पुरुषकी माता, बन्धु बान्धव तथा पिता धन्य हैं, जो श्रीविष्णुकी अर्चना करता हैं,
उन सबको परम धन्य समझना चाहिये |
वैष्णव पुरुषोंके दर्शनमात्रसे जितने भी उपपातक और महापातक है,
उन सबका नाश हो जाता है |
भगवान् विष्णुकी पूजामें संलग्न रहनेवाले मनुष्य अगनिकी भाँति तेजस्वी प्रतीत होते है | वे मेघोंके आवरणसे उन्मुक्त्त चन्द्रमाकी भाँति सब पापोंसे मुक्त्त हो जाते हैं |
वैष्णवोंके पूजनसे बड़े बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं |
आर्द्र, शुष्क, लघु और स्थूल, मन, वाणी तथा शरीरद्वारा किया हुआ, प्रमादसे होनेवाला तथा जानकर और अनजानमें किया हुआ जो पाप है,
वह सब वैषण्वोंके साथ वार्तालाप करनेसे नष्ट हो जाता हो |
साधु पुरुषोंके दर्शनसे पापहीन पुरुष स्वर्गको जाते है और
पापिष्ठ मनुष्य पापसे रहित शुद्ध हो जाते हैं |
यह बिलकुल सत्य बात है | भगवान् विष्णुका भक्त्त पवित्रको भी पवित्र बनानेवाला तथा संसाररुपी कीचड़के दागको धो डालनेमें दक्ष होता है |
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है |

जो मनुष्यभक्त प्रतिदिन भगवान् मधुसूदनका स्मरण करते हैं, उन्हें विष्णुमय समझना चाहिये | उनके विष्णुरुप होनेमें तनिक भी सन्देह नहीं है |
भगवान् के श्रीविग्रहका वर्ण नूतन मेघोंकी नील घटाके समान श्याम एवं सुन्दर है |
नेत्र कमलके समान विकसित एवं विशाल हैं |
वे अपने हाथोंमें शङ्ख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए हैं |
शरीरपर पीताम्बर शोभा पा रहा है |
वक्षःस्थल कौस्तुभमणिसे देदीप्यमान है |
श्रीहरि गलेमें वनमाला धारण किये हुए हैं |कुण्डलोंकी दिव्य ज्योतिसे उनके कपोल और मुखकी कान्ति बहुत बढ़ गयी है |
किरीटसे मस्तक सुशोभित है | कलाईयोंमें कंगन, बाँहोंमें भुजबंद और
चरणोंमें नूपुर शोभा दे रहे हैं |
पार्वती, जो ब्राह्मण भक्तिभावसे युक्त हो इस प्रकार श्रीविष्णुका ध्यान करते है,
वे साक्षात् विष्णुके स्वरुप हैं | वे ही वास्तवमें वैष्णव हैं,
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है |
देवेश्वरि, उनका दर्शनमात्र करनेसे, उनमें भक्ति रखनेसे, उन्हें भोजन कारनेसे तथा
उनकी पूजा करनेसे निश्चिय ही वैकुण्ठधामकी प्राप्ति होती है ||

|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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