शिवरात्रिको शिवपूजन का महत्त्व | Shivratri ko Shivpujanka Mahatva |

 

शिवरात्रिको शिवपूजन का महत्त्व

शिवरात्रिको शिवपूजन का महत्त्व



सूतजी कहते हैं -
माघ मासमें कृष्ण पक्षकी चतुर्दशीका उपवास अत्यन्त दुर्लभ है |
 उसमें भी शिवरात्रिमें जागरण करना तो मैं मनुष्योंके लिये और दुर्लभ मानता हूँ |
उससे भी अत्यन्त दुर्लभ है शिवलिङ्गका दर्शन |
परमेश्वर शिवके पूजनको तो मैं और भी दुर्लभतर मानता हूँ |
सौ करोड़ जन्मोंमें उत्पन्न हुई पुण्यराशिके प्रभावसे कभी
 भगवान् शङ्करकी बिल्वपत्रसे पूजा करनेका अवसर प्राप्त होता है | 
दस हजार वर्षोतक जिसने गङ्गाजीके जलसें स्नान किया है
उसको जो फल मिलता है वही फल मनुष्य एक बार बिल्वपत्रसे भगवान् शङ्करकी पूजा करके प्राप्त कर लेता है |
प्रत्येक युगमें जो जो पुण्य इस संसारमें लुप्त हुए हैं वे 
सभी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में पूर्णतः विद्यमानरहते हैं |
लोकमें ब्रह्मा आदि देवता और वरिष्ठ आदि मुनि 
इस फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीकी भूरी 
प्रशंसा करते हैं |
इस शिवरात्रिको यदि किसीने उपवास किया तो उसे
सौ यज्ञोंमे अधिक पुण्य होता है |
जिसने एक बिल्वपत्रसे शिवलिङ्गका पूजन किया है उसके पुण्यकी समता तीनों लोकोंमें कौन कर सकता है ?


इस विषयमें एक परम सुन्दर पुण्य कथा कही जाती है |
इक्ष्वाकुवंशमे मित्रसह नामसे प्रसिद्ध एक परम धर्मात्मा राजा हो गये हैं |
वे समस्त धनुर्धारियोंमें श्रेष्ठ,
सब अस्त्र शस्त्रोंके ज्ञाता, शास्त्रज्ञ, वेदोंके पारङ्गत विद्वान्, शूरवीर, अत्यन्त बली, उत्साही, नित्य उद्योगी और दयाके निधान थे |
राजाको शिकार खेलनेका व्यसन था |
एक दिन उन्होंने अपनी बहुत बड़ी सेना साथ लेकर भयङ्कर वनमें प्रवेश किया और वहाँ बहुतसे व्याघ्र, जंगली सूअर तथा सिंहोंको अपने बाणोंसे  बींध डाला | राजा मित्रसह रथपर सवार हो कवचमे सुरक्षित होकर वनमें विचर रहे थे |
उसी समय उन्होंने अग्नि के समान आकृतिवाले एक निशाचरको मारा |
उसका छोटा भाई दूरसे यह देखकर शोकमग्न हो गया और वहीं कहीं छिप गया |
भाईको मारा गया देख उसने मांजी मन इस प्रकार विचार किया यह राजा बड़ा दुर्धर्ष वीर है, इसे छलसे ही जितना चाहिये |
ऐसा निश्चय करके वह पापात्मा राक्षस मनुष्यके समान आकृति बनाकर राजाके समीप आया |
राजाने सेवा करनेके लिये विनितभावसे आये हुए उस मनुष्यको देखकर अज्ञानवश उसे रसोईघरका अध्यक्ष बना दिया |
तत्पश्चात् राजा लौटकर अपनी पुरिको आये |
महाराजा मित्रसहकी पत्नी मदयन्ती नामसे प्रसिद्ध थी |
वह नलकी स्त्री दमयन्तीके समान बड़ी पतिव्रता थी |
एक दिन राजा मित्रसहने श्राद्धके दिन मुनिवर वरिष्ठको निमन्त्रित करके अपने घरपर बुलाया |
उस समय रसोईयेके रुपमें राक्षसने सागमें मनुष्यका मांस मिला दिया और वही वरिष्ठजीके आगे परोस दिया |

उसे देखकर वरिष्ठजी बोले -
राजन् मुझे धिक्कार है, धिक्कार है |
तू इतना दुष्ट और छली है कि मेरे आगे मनुष्यका मांस रख दिया |
इस पापके कारण तू राक्षस हो जायगा |
जब मुनिको यह मालूम हुआ कि यह सारी करतूत राक्षसकी है,
तब उन्होंने उस शापको बारह वर्षोंकी अवधिमें सीमित कर दिया |
तब राजा भी कुपित होकर बोले यह मेरी करतूत नहीं थी और न मैं इस विषयमें कुछ जानता ही था, तो भी आपने मुझे अकारण शाप दे दिया |
इसलिये गुरु होनेपर भी आपको मैं भी शाप देता हूँ |
ऐसा कहकर राजा अञ्जलिमे जल ले गुरुको शाप देनेके लिये उद्यत हुए |
यह देख रानी मदयन्तीने पतिके चरणोंमें गिरकर उन्हें ऐसा करनेसे रोका |
रानीके वचनका मान रखनेके लिये राजा शाप देनेसे निवृत हो गये और उस अञ्जलिके जलको उन्होंने अपने दोनों पैरोंपर डाल दिया |
इससे राजके दोनों पैर कल्मषयुक्त हो गये 
तबसे राजाका नाम कल्माषपाद हो गया |


गुरुके शापसे राजा वनमें विचरनेवाले राक्षस हुए | एक दिन वनमें कहीं किशोर अवस्थावाले नवविवाहित मुनि दम्पति रमण कर रहे थे |
उस समय उस नर भक्षी राक्षसने तरुण मुनिकुमारको खानेसे लिये पकड़ लिया |
ठीक उसी तरह, जैसे छोटेसे मृगशिशुको कोई व्याघ्र पकड़ लेता है |
राक्षसके वशमें पड़े हुए अपने पतिको देखकर उसकी प्यारी स्त्री करुणापूर्वक बोली सूर्यवंशयशोधर महाराज | आप ऐसा पाप न कीजिये |
आप राक्षस नहीं अयोध्याके सम्राट हैं, रानी मदयन्तीके पति हैं |
प्रभो ये मेरे स्वामी मुझे प्राणोंसे भी अधिक प्रियतम हैं, इन्हें न खाइये |
शरणमें आये हुए दीन, दुखी मनुष्योंको आप ही सहारा देनेवाले हैं |
इन महात्मा पतिके बिना मेरा यह शरीर मेरे किये महान् भार है |
इस मलिन पापमय पाश्चभौमिक  शरीरसे क्या सुख होगा ?
ये मुनिकुमार देखनेको बालक हैं, किंतु वेदोंके 
विद्वान्, शान्त, तपस्वी और अनेक शास्त्रोंके ज्ञाता हैं |
इन्हें प्राणदान देकर आपको सम्पूर्ण जगत्के रक्षा करनेका पुण्य होगा |
महाराज मैं ब्राह्मणकी स्त्री हूँ, अभी बालिका हूँ, मुझपर कृपा कीजिये |
आप जैसे साधु पुरुष अनाथों,
दीनों और पीडितोंपर कृपा करनेवाले होते हैं |


इस प्रकार प्रार्थना करनेपर भी उस निर्दयी, नरभक्षी राक्षसने उस ब्राह्मणकुमारकी
गर्दन मरोड़ डाली और उन्हें उदरस्थ कर लिया |
तब वह पतिव्रता ब्राह्मणी अत्यन्त शोकसे ग्रस्त हो विलाप करने लगी |
उसने पतिकी हड्डियोंको एकत्रित करके भयंकर चिटा प्रज्वलित की और
पतिका अनुसरण कारनेंके लिये अग्निंमें प्रवेश करते समय राक्षस रुपधारी राजाको
इस प्रकार शाप दिया -
अरे ओ पापात्मन्, तूने मेरे पतिको खा लिया है,
अतः तू भी जब स्त्रीसे समागम करेगा, उसी समय तेरी मृत्यु हो जायेगी |
ऐसा कहकर वह पतिव्रता स्त्री चिताकी आगमें प्रवेश कर गयी |


गुरुके शापका उपभोग करके राजा पुनः अपने स्वरुपको प्राप्त हुए और
प्रसन्नतापूर्वक घरको गये |
रानी मदयन्ती उस पतिव्रता ब्राह्मणीके शापको जानती थीं |
इसलिये वैधव्यसे डरकर उनहोंने रतिकी इच्छावाले पतिको अपने पास आनेसे मना
कर दिया | राजा मित्रसह राज्यके सुखभोगसे विरक्त हो गये और सम्पूर्ण
लक्ष्मीका परित्याग करके पुनः वनमें चले गये |
राज्य छोड़कर सम्पूर्ण पृथ्वीपर विचरते हुए राजाने अपने पीछे पीछे आती हुई एक भयंकर रुपवाली पिशाचिको देखा |
वह ब्रह्महत्या थी | श्रेष्ठ मुनियोंके उपदेशसे राजाने उस ब्रह्महत्याको पहचाना |
उसके निवारणके लिये विरक्तचित्तवाले राजाने अनेक वर्षोंतक बहुत से क्षेत्रोंमें विचरण किया |
फिर भी जब ब्रह्महत्या निवृत्त नहीं हुई, तब वे मिथिलामें आये |
इसी समय उधर आते हुए निर्मल अन्तःकरणवाले गौतम मुनिको उनहोंने देखा
और उनके समीप जाकर बार बार प्रणाम किया |
तब मुनिश्रेष्ठ गौतमने आशीर्वाद दे मन्द मन्द मुसकुराते हुए कहा -
राजन, तुम्हारे यहाँ कुशल तो है न ?
तुम्हारे राज्यमें कोई विघ्न बाधा तो नहीं है ?


राजने कहा -
ब्रह्मन्, आपकी कृपासे हम सब लोग कुशलसे हैं, परंतु यह भयंकर रुपवाली पिशाची हमें बड़ा दुःख देती है | शापग्रस्त होकर हमने जो दुर्लघ्य पाप कर डाला है,
उसकी शान्ति सहस्त्रों प्रायश्चित्तोंसे भी नहीं हो रही है |
आप प्रेमपूर्वक सम्भाषण करके मेरे चित्तको आनन्दित कर रहे हैं |
महाभाग, आज अपने चरण कमलोंकी शरणमें आये हुए मुझ पापीको शान्ति प्रदान कीजिये, जिससे मुझे सुख मिले |


तब करुणानिधि गौतमजीने कहा -
राजेन्द्र, तुम्हें साधुवाद है ? अब अपने महान् पापोंसे होनेवाले भयको त्याग दो |
जब भगवान् शङ्कर रक्षा करनेवाले हैं,
तब उनकी शरणमें आये हुए भक्तोंको कहाँसे भय हो सकता है ?
गोकर्ण नामक मनोरम क्षेत्र महापातकोंका संहार करनेवाला है |
वहाँ बड़े से बड़े पाप भी नहीं टिक सकते | गोकर्ण क्षत्रमें विद्यमान भगवान्
शिव स्मरण करनेमात्रसे समस्त पापोंका नाश कर डालते हैं |
जैसे कैलास और मन्दराचलके शिखरपर भगवान् शिवका निश्चित निवास है,
उसी प्रकार गोकर्ण मण्डलमें भी है |
वहाँ महादेवजी महाबल नामसे निवास करते हैं |
रावण नामक राक्षसने घोर तपस्या करके जिस शिवलिङ्गको प्राप्त किया था,
उसीको गणेशजीने गोकर्ण क्षेत्रमें स्थापित किया है |
सनक सनन्दन आदि महात्मा तथा मृगचर्ममय वस्त्र धारण करनेवाले साध्य एवं मुनिगण वहाँ बैठकर भगवान् शिवकी उपासना करते हैं |
दण्डी, मुण्डी, स्नातक , ब्रह्मचारी तथा तपसे समस्त पातकोंके जला डालनेवाले महात्मा भी देवाधिदेव शिवकी उत्तम भक्तिसे उपासना करते हैं |
इस ब्रह्माण्ड मण्डलमें गोकर्णके समान दूसरा क्षेत्र नहीं है |
वहाँ महात्मा अगस्त्य मुनिने घोर तपस्या की है |
राजन्, इस तीर्थमें सम्पूर्ण देवताओंके स्थान हैं |
देवाधिदेव भगवान् विष्णु परमेष्ठी ब्रह्मा, वीरवर कार्तिकेय तथा गणेशजीके स्थान हैं |
गोकर्ण तीर्थमें कोटि कोटि शिवलिङ्ग विद्यामान हैं |
वहाँ पग पगपर असंख्य तीर्थ मौजूद हैं |
सत्ययुगमें महाबल नामक भगवान् शिव श्वेतवर्णके होते हैं,
त्रेतामें उनका रंग अत्यन्त लाल हो जाता है,
द्वारपर मे वे पीत वर्णके और कलियुगमें श्याम वर्णके हो जायँगे |
महाबल शिव भयङ्कर कलियुग प्राप्त होनेपर कोमल भावको प्राप्त होंगे |
परम उत्तम गोकर्ण क्षेत्र पश्चिम समुद्रके तटपर है |
वह ब्रह्महत्या आदि पापोंको भस्म कर डालता है |
इस संसारमें जो ब्रह्मघाति, भूतद्रोही, शठ और अन्यान्य पापी होते हैं,
वे सब गोकर्ण तीर्थमें पहुँचकर वहाँके तीर्थोंमें स्नान करके महाबल नामक
शिवजीका दर्शन करनेपर शिवलोकको प्राप्त होते हैं |
वहाँ पुण्य तिथियोंको पुण्य नक्षत्र एवं पुण्य दिनमें जो महेश्वर शिवकी पूजा करते हैं,
वे सब शिवरुपी हो जाते हैं |
यदा कदा जो कोई भी मनुष्य गोकर्ण तीर्थमें जाकर भगवान् शङ्करकी पूजा
करता है, वह ब्रह्मपदको प्राप्त होता है |
रविवार, सोमवार तथा बुधवारको जब अमावास्या तिथिका 
योग हो, तब वहाँ समुद्रमें किया हुआ स्नान, दान, पितृतर्पण, शिवपूजा, जप, होम, व्रतचर्या और ब्राह्मणोंका सत्कार अनन्त फल देनेवाला होता है |
महाप्रदोषकी बेलामें भगवान् शिवका पूजन मोक्ष देनेवाला है |
माघ मास में जो परम पुण्यमयी कृष्ण चतुर्दशी आती है, उस दिन शिवलिङ्ग और बिल्वपत्र इन सबका सुयोग दुर्लभ है 
अहो, माया कैसी प्रबल है कि जिससे मूढ़ हुए मनुष्य भगवान् शिवकी
इस महातिथिको उपवासतक नहीं करते |
शिवरात्रिका उपवास, जागरण, भगवान् शङ्करके समीप निवास तथा गोकर्ण क्षेत्रका वास इस सबका सुयोग होना मनुष्योंके लिये शिवकोलमें जानेकी सीढ़ी है |
राजन्, मैं भी इस समय गोकर्ण तीर्थसे लौटकर आया हूँ |
शिवरात्रिको उपवास करके भगवान् शिवका महोत्सव देखकर लौटा हूँ |
शिवरात्रिपर वहाँका महान् उत्सव देखनेके लिये
सब देशोंसे चारों वर्णोंके लोग आये थे | स्त्री, बालक, वृद्ध तथा चारों आश्रमोंके निवासी वहाँ आकर देवेश्वर शिवका दर्शन करके कृतकृत्यताको प्राप्त हुए |
लौटते समय मार्गमें एक अद्भुत आश्चर्यकी बात देखकर मैं परमानन्दमें निमग्न हो कृतार्थ हो गया हूँ |

|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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