प्रतिपत्कल्प निरुपणमें ब्रह्माजीकी पूजा अर्चाकी महिमा | Brahmaji ka pujan |

 

प्रतिपत्कल्प निरुपणमें ब्रह्माजीकी पूजा अर्चाकी महिमा

प्रतिपत्कल्प निरुपणमें ब्रह्माजीकी पूजा अर्चाकी महिमा



राजा शतानीकने कहा -
ब्रह्मन्, आप प्रतिपदा तिथिमें किये जानेवाले कृत्य, ब्रह्माजीके पूजनकी विधि और उसके फलका विस्तारपूर्वक वर्णन करें |

सुमन्तु मुनि बोले -
हे राजन्, पूर्वकल्पमें स्थावर जङ्गमात्मक सम्पूर्ण जगत्
 के नष्ट हो जानेपर सर्वत्रजल ही जल हो गया |
उस समय देवताओंमें श्रेष्ठ चतुर्मुख ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने अनेक लोकों, देवगणों तथा विविध प्राणियोंकी सृष्टि की |
प्रजापति ब्रह्मा देवताओंके पिता तथा अन्य जीवोंके पितामह हैं,
इसलिये इनकी सदा पूजा करनी चाहिये |
ये ही जगत् की सृष्टि, पालन तथा संहार करनेवाले हैं |
इनके मनसे रुद्रका, वक्षःस्थलसे विष्णुका आविर्भाव हुआ |
इनके चारों मुखोंसे अपने छः अङ्गोंके साथ चारों वेद प्रकट हुए |
सभी देवता, दैत्य, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग आदि इनकी पूजा करते है |
यह सम्पूर्ण जगत् ब्रह्ममय है और ब्रह्ममें स्थित है,
अतः ब्रह्माजी सबसे पूज्य हैं |
राज्य, स्वर्ग और मोक्ष ये तीनों पदार्थ इनकी सेवा करनेसे प्राप्त हो जाते हैं |
इसलिये सदा प्रसन्नचित्तसे यावज्जीवन नियमसे ब्रह्माजीकी पूजा करनी चाहिये |
जो ब्रह्माजीकी सदा भक्तिसे पूजा करता है, वह मनुष्य स्वरुपमें साक्षात् ब्रह्मा ही है |
ब्रह्माजीकी पूजासे अधिक पुण्य किसीमें न समझकर सदा ब्रह्माजीका पूजन करते रहना चाहिये | जो ब्रह्माजीका मन्दिर बनवाकर उसमें विधिपूर्वक
ब्रह्माजीकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करता है, वह यज्ञ, तप, तीर्थ, दान आदिके फलोंसे करोड़ो गुना अधिक फल प्राप्त करता है |
ऐसे पुरुषके दर्शन और स्पर्शसे इक्कीस पीढ़ीका उद्धार हो जाता है |
ब्रह्माजीकी पूजा करनेवाला पुरुष बहुत कालतक ब्रह्मलोकमें निवास करता है |
वहाँ निवास करनेसे पश्चात् वह ज्ञानयोगके माध्यमसे मुक्त हो जाता है
अथवा भोग चाहनेपर मनुष्यलोकमें चक्रवर्ती राजा या वेद वेदाङ्गपारङ्गत कुलीन ब्राह्मण होता है |
किसी अन्य कठोर तप और यज्ञोंकी आवश्यकता नहीं है,
केवल ब्रह्माजीकी पूजासे ही सभी पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं |
जो ब्रह्माजीके मन्दिरमें छोटे जीवोंकी रक्षा करता हुआ सावधानीपूर्वक धीरे धीरे झाड़ू देता है तथा उपलेपन करता है,
वह चान्द्रायण व्रतका फल प्राप्त करता है |
एक पक्षतक ब्रह्माजीके मन्दिरमें जो झाड़ू लगाता है,
वह सौ करोड़ युगसे भी अधिक ब्रह्मलोकमें पूजित होता है और अनन्तर सर्वगुणसम्पन्न, चारों वेदोंका ज्ञाता धर्मात्मा राजाके रुपमें पृथ्वीपर आता है |
भक्तिपूर्वक भटकता है |
जिस तरह मानवका मन विषयोंमें मग्न होता है, वैसे ही यदि ब्रह्माजीमें मन निमग्न रहे तो ऐसा कौन पुरुष होगा जो मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता |
ब्रह्माजीके जीर्ण एवं खण्डित भोग भोगता रहा |
यह शकट व्रतका माहात्म्य हमने संक्षेपमें वर्णन किया है |
दृढ़व्रती पुरुषके लिये राजलक्ष्मी, वैकुण्ठलोक, मनोवाञ्छित फल आदि दुर्लभ पदार्थ भी जगत् में सुलभ हैं |
इसलिये सदा सत्परायण पुरुषको व्रतमें संलग्न रहना चाहिये |

|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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