सङ्ग्राम विजय विद्या | Sanghram Vijay Vidhya |


सङ्ग्राम विजय विद्या 
भगवान् शिव ने कहा 
माँ पार्वती को यह विद्या बताई थी 
बहुत चमत्कारिक और अद्भुत विद्या है 

सङ्ग्राम विजय विद्या  भगवान् शिव ने कहा  माँ पार्वती को यह विद्या बताई थी  बहुत चमत्कारिक और अद्भुत विद्या है
सङ्ग्राम विजय विद्या 

ईश्वर उवाच 
सङ्ग्रामविजयां विद्यां पदमालां वदाम्यहं | 
ॐ ह्रीं चामुण्डे श्मशानवासिनि खट्वाङ्गकपालहस्ते महाप्रेतसमाँरूढे महाविमानसमाकुले कालरात्रि महागणपरिवृते महामुखे बहुभुजे घण्टाडमरूकिङ्किणी 
( हस्ते ),

अट्टाट्टहा से किलि किलि, ॐ हुम् फट्, 
दंष्ट्राघोरान्धकारिणि नादशब्दबहुले गजचर्मप्रावृतशरीरे मांसदिग्धे लेलिहानोग्रजिह्वे महाराक्षसि रौद्रदंष्ट्राकराले भीमाट्टाट्टहासे स्फुरद्विद्युत्प्रभे चल चल, ॐ चकोरनेत्रे चिलि चिलि, ॐ ललज्जिह्वे, ॐ भीं भ्रुकुटिमुखी हुँकारभयत्रासनी कपालमालावेष्टितजटामुकुटशशंकधारिणी, अट्टाट्टहासे किलि किलि, ॐ ह्रूं  द्रष्टाघोरान्धकारिणि, सर्वविघ्नविनाशिनि, इदं कर्म साधय साधय, ॐ शीघ्रं कुरु कुरु, ॐ फट्, ओमङ्कुशेन शमय, प्रवेशय, ॐ रङ्ग रङ्ग, कम्पय कम्पय, ॐ चालय, ॐ छिन्द, ॐ मारय, ओमनुक्रमय, ॐ वज्रशरीरं पातय, ॐ त्रैलोक्यगतं दुष्टमदुष्टं वा गृहीतमगृहीतं वाऽऽवेशय, ॐ नृत्य, ॐ वन्द, ॐ कोटराक्ष्यूर्ध्वकेश्युलूकवदनेकरंकिणि, ॐ करँगमालाधरिणि दह, ॐ पच पच, ॐ गृह्ण, ॐ मण्डलमध्ये प्रवेशय,ॐ किं विलंबसि, ब्रह्मसत्येन विष्णुसत्येन रुद्रसत्येनर्षिसत्येनावेशय, ॐ किलि किलि, ॐ खिलि खिलि,  विलि विलि, ॐ विकृतरूपधारिणि कृष्णभुजङ्गवेष्टितशरीरे सर्वग्रहावेशिनि प्रलम्बौष्ठिनि भ्रूभङ्गलग्ननासिके विकटमुखि कपिलजटे ब्राह्मिभञ्च, ॐ ज्वालामुखि स्वन, ॐ पातय, ॐ रक्ताक्षि घुर्णय, भूमि पातय, ॐ शिरो गृह्ण, चक्षुर्मीलय, ॐ हस्तपादों गृह्ण, मुद्रां स्फोटय, ॐ  फट्,  ॐ विदारय, ॐ त्रिशूलेन च्छेदय, ॐ वज्रेण हन, 
ॐ दण्डेन ताडय ताडय , ॐ चक्रेण  च्छेदय  च्छेदय, ॐ शक्त्या भेदय, दंष्ट्र्या कीलय, ॐ कर्णिकया पाटय, ओमङ्कुशेन गृह्ण, 

ॐ शिरोऽक्षिज्वरमेकाहिकं द्व्याहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं   
डाकिनिस्कन्दग्रहान मुञ्च मुञ्च, ॐ पच, ओमुत्सादय, ॐ भूमिं पातय, ॐ गृह्ण, ॐ ब्रह्माण्येहि, ॐ माहेश्वर्येहि, ॐ कौमार्येहि, ॐ वैष्णव्येहि,  ॐ वाराह्येहि, ओमैन्द्र्यैहि, ॐ चामुण्ड एहि, ॐ रेवत्येहि, ओमाकाशरेवत्येहि, ॐ हिमवच्चारिण्येहि, रुरुमर्दिन्यसुरक्षयंकर्याकाशगामिनि पाशेन बन्ध बन्ध, अङ्कुशेन कट कट, समये तिष्ठ, ॐ मण्डलं प्रवेशय, ॐ गृह्ण, मुखं बन्ध, ॐ चक्षुर्बन्ध हस्तपादौ च बन्ध, दुष्टग्रहान सर्वान बन्ध, ॐ दिशो बन्ध, ॐ विदिशो बन्ध, अधस्ताद्वन्ध, ॐ सर्व बन्ध, ॐ भस्मना पानीयेन वा मृत्तिकया सर्षपैर्वा सर्वानावेशय, ॐ पातय, ॐ चामुण्डे किलि किलि, 
ॐ विच्चे हुं फट स्वाहा ||

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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