वंशलाभाख्य कवच | Vansh Labhakhya Kavach |


वंशलाभाख्य कवच

भैरव तंत्र का अद्भुत और उत्तम कवच जैसा नाम वैसा फल | 
नारदमुनि ने महादेव से प्रश्न पूछा था और उसके प्रतिउत्तर में महादेवजी ने इस कवच का प्रादुर्भाव किया था | 
महादेव जी कहते है यह कवच तीनो लोको में दुर्लभ है, इसी कवच से कमला ने कामदेव को, उमा ने यानी माँ पार्वती ने गणेश और कार्तिकेय को, इन्द्राणी ने जयंत को और सभी देवियो ने भी पुत्र प्राप्त किये थे | 
इस कवच को धारण करने से या नित्य तीन पाठ करने से अक्षय पुत्र की प्राप्ति होती है |


वंशलाभाख्य कवच | Vansh Labhakhya Kavach |
वंशलाभाख्य कवच 

वंशलाभाख्य कवच
नारद उवाच 
भगवन सर्वधर्मज्ञ पार्वतीप्राणवल्लभ | 
वंशलाभाख्यकवचं कृपया में प्रकाशय ||

ईश्वर उवाच
वंशलाभाख्यकवचं दुर्लभं भुवनत्रये |
यस्य प्रसादात कमला लेभे तनयमुत्तमम ||
कामदेवमपर्णा च विनायक षडाननौ |
जयन्तभिंद्रवनिता देवपत्न्यः सुतानपि ||

विनियोगः
अस्य वंशलाभाख्यकवचस्य भैरवऋषिरनुष्टुपछन्दः
 श्रीपार्वती देवता जीवित तनय प्राप्तये विनियोगः |
पार्वती में शिरः पातु वक्त्रं पातु महेश्वरी | 
भवानी नयने पातु भ्रुवौ शङ्करसुंदरी || 

मध्येपातु महेशानी नितम्बं सुरवन्दिता | 
उरु गौरी सदा पातु कौषिकी जानुयुग्मकम् || 

बाहू द्वौ सुमुखी पातु पाणियुग्मं सुभाविनी | 
पादौ ब्रह्ममयी पातु श्रवणे भुवनेश्वरी || 

नासिके ललिता पातु कण्ठं त्रिपुरसुन्दरी | 
रुद्राणी हृदयँ पातु स्तनद्वन्द्वं महेश्वरी || 

आपादमस्तकं पातु सर्वाङ्गं सर्वमङ्गला | 
इति ते कथितं विप्र कवचं देवपूजितम् || 

पठित्वा धारयित्वा च अक्षयं तनयं लभेत | 
ध्यानमस्याः प्रवक्ष्यामि यथा ध्यात्वा पठेन्नरः || 

सहस्त्रादित्यसङ्काशां सर्वाभरणभूषिताम् | 
त्रिनेत्रां पाणिविन्यस्तपाशांकुशवराभयाम् || 

|| श्रीभैरवतन्त्रे शिवनारद सम्वादे वंशलाभाख्यकवचं सम्पूर्णं || 

यह कवच वंश की वृद्धि करनेवाला है | 
भैरवतंत्र के अनुसार श्रीनारद मुनि महादेवजी को पूछते है | की आप सभी धर्मो के ज्ञाता है | 
हे पार्वती वल्लभ कृपा करके वंशलाभक नामक कवच मुझे बताये | तब महादेवजी कहते है मुनि श्रेष्ठ नारद | यह कवच तीनो लोको में दुर्लभ है |
 इसी कवच के प्रभाव से कमला ने कामदेव को | 
पार्वती ने गणेश और कार्तिकेय को | इंद्राणी ने जयंत को और  देवपत्नियो ने पुत्र और श्रेष्ठ संतान प्राप्त किये है | 



karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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