लिंगोत्पत्ति स्तवन | Lingotpatti stavan |


 लिंगोत्पत्ति स्तवन

लिंगोत्पत्ति स्तवन


अनादि देव देवेश ! विश्वेश्वर ! महेश्वर ! | 
सर्वज्ञ ! ज्ञानविज्ञान प्रदायक ! नमोऽस्तुते || 
हे अनादि देव देवेश ! विश्वेश्वर ! महेश्वर ! सर्वज्ञ ! ज्ञान - विज्ञान के प्रदायक आपको नमस्कार है | 

अनन्तकान्ति संपन्न अनंतासन संस्थित | 
अनन्तशक्ति सम्भोग परमेश नमोस्तुते || 
आप अनन्तकान्तिसे सम्पन्न हैं | आप अनन्त आसन पर संस्थित है | 
आप अनन्त शक्ति का संभोग करने वाले हैं | हे परमेश ! आपको नमस्कार है | 

परावरपरातीत ! उत्पत्तिस्थितिकारण ! | 
सर्वार्थ साधनोपाय ! विश्वेश्वर !  नमोऽस्तुते || 
आप पर और अपर की अतीत है ! उत्पत्ति व स्थिति के कारण आप ही हैं | 
आप सभी साधनों के उपाय है | हे विश्वेश्वर आपको नमस्कार है | 

बहुरुप ! महारुप ! सर्वरुप !  नमोऽस्तुते ! |
पशुपाशार्णवातीत ! वरप्रद  नमोऽस्तुते || 
आप बहुत रुप वाले हैं ! आप महारुप वाले हैं ! समस्त रुप वाले हैं ! आपको नमस्कार है |
 आप पशुपाश युक्त सागर से भी अतीत हैं | आप वरदान देने वाले हैं | 
आपको नमस्कार है | 

स्वभाव निर्मलाभोग ! सर्वव्यापिन् सदाशिव ! | 
योगयोगिन्महायोगिन् योगेश्वर !  नमोऽस्तुते || 
आपका स्वभाव ही निर्मल भोग वाला है, आप सर्वव्यापी और सदाशिव है !
 आप योग व योगियों के भी महायोगी है ! योगेश्वर है ! आपको नमस्कार है | 

निरञ्जन ! निराधार ! स्वाधार ! निरुपप्लवः ! |  
प्रसन्न परमेशान ! योगेश्वर !  नमोऽस्तुते || 
आप निरंजन हैं ! निराधार हैं ! अपने ही आधार से हैं ! आप प्रलय से रहित हैं ! 
हे प्रसन्न परम ईशान ! हे योगेश्वर ! आपको नमस्कार है | 

जिह्वा चपलभावेन वेदितव्योऽसि यन्मया | 
तत् क्षन्तव्यमनौपम्य ! कस्ते स्तौति गुणार्णवम् || 
हे प्रभु ! मेरे द्वारा जिह्वा की चपलता से जो कुछ भी आपको कहा गया हो, उसे आप क्षमा कर देना | 
आप गुणों के सागर की स्तुति कौन कर सकता है | 

लिङ्गोत्पत्तिस्तवं पुण्यं यः श्रुणोति नरस्सदा | 
नोत्पद्यते स संसार स्थानं प्राप्नोति शाश्वतम् || 
तस्मात्सर्व प्रयन्तेन शृणुयाद्वाचयेत्तथा | 
पाप कञ्चुकमुसृज्य प्राप्नोति परमं पदम् || 
इस तरह लिंग के स्तवन का पुण्य जो नर सदा सुनता है, वह पुनः इस संसार में उत्पन्न नहीं होता | 
वह शाश्वत स्थान को प्राप्त कर लेता है | इसलिए समस्त प्रयास करके इस स्तवन को सुनना और सुनाना चाहिए | इससे पापों की केंचुली को छोड़कर व्यक्ति परम पद को प्राप्त कर लेता है | 

लिङ्गमध्ये परं लिङ्गं स्थितं प्रादेश संमितम् | 
समाधि(सदाधि)स्तोत्र सम्पनौ द्दष्टयन्तौ शिवात्मकौ || 
नैव तत्काञ्चनं रौप्यं ताम्रं स्फाटिक मौक्तिकम् | 
लक्षमात्रस्थितं शान्तं केवलं तच्छिवात्मकम् || 
इधर, उक्त दिव्य लिंग के मध्य में प्रादेश या बालिस्त भर प्रमाण का एक परमलिंग विद्यमान था जिसे समाधिस्तोत्र सम्पन्न लोगों ने शिवात्मक रुप में देखा | 
वह न तो सोने का था, न चाँदी और न ताँबे का था | 
वह न स्फाटिक, न ही मोती का था | वह तो लक्षमात्र स्थित होकर शान्त केवल शिवात्मक रुप में ही था | 

तयोऽस्तुष्टौ महादेवो प्रददौ वरमुत्तमम् | 
कारणत्वमनुक्त्वा च तत्रैवान्तरधीयत || 
उस स्तवन से महादेव उन पर संतुष्ट हुए और उन्हें उत्तम वरदान दिया | साथ ही कारण नहीं बताते हुए वे अन्तर्धान हो गए | 

|| अस्तु || 


  
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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