श्री दुर्गामाला मंत्र | Shree Durgamala Mantra |

 

श्री दुर्गामाला मंत्र

श्री दुर्गामाला मंत्र



ॐ नमो भगवति चामुण्डे श्मशानवासिनी कपालहस्ते महाप्रेत समारुढे महाविमानमालाकुले कालरात्रि बहुगण परिवृते महामुखे महाभुजे घंटाडमरुकिंकिणिके अट्टाट्टहासे किलि किलि हूं सर्वनादशब्दबहुले गजचर्मप्रावृतशरीरे रुधिरमांसदिग्धे लोलाग्रजिह्वे महाराक्षसि रौद्रदंष्ट्राकराले भीमाट्टहासे स्फुरितविद्युत्समप्रभे चल चल करालनेत्रे हिलिहिलि अनलं प्रवेशय हुं जिह्वे त्रि भृकुटिमुखि ॐ कारं भद्रासने कपालमालावेष्टिते जटामुकुटशशांकधारिणी अट्टाट्टहासे किलि किलि दंष्ट्रान् घोरान्धकारिणी सर्वविघ्नविनाशिनी इदं कर्म साधय साधय शीघ्रं कुरु कुरु कह कह अंकुंशेन तमनु प्रवेशय वंग वंग कम्पय कम्पय चल चल चालय चालय रुधिरमांसपद्मप्रिये हन हन कुट्ट कुट्ट छिन्धि छिन्धि मारय मारय अनुब्रूम वज्रशरीरं साधय साधय त्रैलोक्यगतिमपि दुष्टं वा गृहतमगृहीतमावेशय आवेशय क्रामय क्रामय नृत्य नृत्य बन्ध बन्ध वल्ग वल्ग कोटराक्षि उर्ध्वकेशि उलूक वदने करकिङ्किणि करकं मालाधारिणि दह दह पच पच गृहाण गृहाण मण्डलमध्ये प्रवेशय प्रवेशय किं विलंवसि ब्रह्मसत्येन विष्णुसत्येन ऋषिसत्येन रूद्रसत्येन आवेशय आवेशय किलि किलि खिलिखिलि मिलि मिलि चिलि चिलि विकृतरूपधारिणि कृष्णभुजंगवेष्टितशरीरे सर्वग्रहावेशिनि प्रलम्बोष्ठि भ्रूभग्ननासिके विकटमुखि कपिलजटे ब्राह्मि भञ्ज भञ्ज ज्वल ज्वल कालमुखि खल खल पातय पातय रक्ताक्षि घुर्णय घुर्णापय भूमिं पातय पातय शिरो गृह्ण गृह्ण चक्षुर्मीलय मीलय भञ्ज भञ्ज पादौ गृहाण गृहाण मुद्रां स्फोटय स्फोटय हुं हुं फट् विदारय विदारय त्रिशूलेन भेदय भेदय वज्रेण हन हन दण्डेन ताडय ताडय चक्रेण छेदय छेदय शक्त्या भेदय भेदय दंष्ट्रेण दंष्टय दंष्टय कीलकेन कीलय कीलय कर्तृकया पातय पातय अङ्कुशेन गृह्ण गृह्ण शिरोर्तिज्वरमैकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं डाकिनीस्कन्दमहान् मुञ्चापय मुञ्चापय लन लन उत्थापय उत्थापय भूमिं पातय पातय गृह्ण गृह्ण ब्रह्माणि एहि एहि माहेश्वरि एहि एहि कौमारि एहि एहि वाराहि एहि एहि वैष्णवि एहि एहि ऐन्द्रि एहि एहि  चामुण्डे एहि एहि नारसिंहि एहि एहि शिवदूति एहि एहि रेवति एहि एहि शुष्करेवति एहि एहि आकाश रेवति एहि एहि हिमवन्तचारिणि एहि एहि कैलासचारिणि एहि एहि परमन्त्र छिन्धि छिन्धि किलि किलि बिम्बे अघोरे घोररूपिणि चामुण्डे रुरु क्रोधान्ध विनिः सृते असुरक्षयंकरि आकाशगामिनि पाशेन बन्ध बन्ध समयं तिष्ठ तिष्ठ मण्डलं प्रवेशय प्रवेशय पातय पातय गृह्णगृह्ण मुखे बन्ध बन्ध चक्षुः बन्धय हृदयं बन्ध बन्ध हस्तपादौ बन्ध बन्ध दुष्टग्रहान् सर्वान् बन्ध बन्ध दिशां बन्ध बन्ध विदिशं बन्ध बन्ध ऊर्ध्वं बन्ध बन्ध अधस्ताद् बन्ध बन्ध भस्मना पानीयेन मृक्तिकया सर्षपैर्वा आवेशय आवेशय पातय पातय चामुण्डा किलि किलि विच्चे हुं फट्स्वाहा ||

|| दुर्गा माला मंत्र समाप्त ||

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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