शिव स्तोत्र | Shiv Stotra |

 

शिव स्तोत्र

शिव स्तोत्र 


जयात्मयोगसंस्थाय जय संशुद्धचेतसे || 
जय दानैकशूराय जयेशाय नमोऽस्तु ते |
आत्मयोग में स्थित रहने वाले जय हो | उन शुद्ध चेतस की जय हो | 
एकमेव दानवीर की जय हो | जयेश के प्रति नमस्कार है | 

जयोत्तमाय देवाय जय कल्याणदायिने || 
जय प्रकटदेवाय जय जप्याय ते नमः | 
उत्तम देव की जय हो | कल्याणदायी की जय हो | 
प्रकट देव की जय हो | आप जप्य की जय हो | आपको नमस्कार है | 

जय लक्ष्मीविधानाय जय कान्ति विधायिने || 
जय वाक्य विशुद्धाय अजिताय नमो नमः | 
    लक्ष्मी विधानाय की जय हो, कान्ति के विधायक की जय हो, 
विशुद्ध वाक्य वाले शिव की जय हो | अजित को नमन नमस्कार हैं | 

जय त्रिशूलहस्ताय जय खट्वाङ्गधारिणे || 
जय निर्मितलोकाय जय रुपाय ते नमः | 
हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले की जय हो |
खट्वांग धारण करने वाले की जय हो | लोकों को निर्मित करने वाले की जय हो | 
जय रूप में आपको नमस्कार है | 

जय कान्तार्धदेहाय जय चन्द्रार्धधारिणे || 
जय देवादिदेवाय महादेवाय ते नमः | 
कान्ता के अर्धनारीश्वर रुप की जय हो |
अर्धचन्द्रमा को धारण करने वाले की जय हो | 
देवादिदेव की जय हो | महादेव आपको नमस्कार है | 

जय त्रिभुवनेशाय जय विख्यातकीर्तये || 
जयाधाराय देवाय जय कर्त्रे नमोऽस्तु  ते | 
त्रिभुवनेश जी जय हो | विख्यात कीर्ति वाले की जय हो | 
आधार देव की जय हो | सृष्टिकर्ता की जय हो | आपको नमस्कार है | 

जय निर्मल देहाय जय सर्वार्थकारिणे || 
जय मन्मथनाशाय ईशानाय नमो नमः | 
निर्मल देही की जय हो | सर्वार्थकारी की जय हो |
मन्मथ का नाश करने वाले की जय हो | ईशान शिव को नमस्कार है | 

ब्रह्मविष्ण्विन्द्ररुपाय जय शान्ताय ते नमः || 
जय जातविशुद्धाय सर्वव्यापिन्नमोऽस्तु ते | 
ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र रुप वाले की जय हो | शान्त स्वरुप आपको नमस्कार है | 
विशुद्धजात की जय हो | सर्वव्यापि आपको नमस्कार है | 



इत्येतच्छान्तिकाऽध्यायं यः पठेच्छृणुयादऽपि || 
विधूय सर्वपापानि शिवलोके महीयते | 
इस शान्तिकाध्याय को जो व्यक्ति पढ़ता है अथवा सुनता है, उसके सभी पाप इसके प्रभाव से धुल जाते हैं और वह शिवलोक को प्राप्त होते है | 

कन्यार्थी लभते कन्यां जयकामो जयं लभेत् || 
अर्थकामोलभेदर्थं पुत्रकामो बहून्सुतान् | 
जिनको कन्या वांछित हो, उनको कन्या मिलती है, विजय के इच्छुकों को 
विजय मिलता है | धन की कामना रखने वालों को धन की प्राप्ति होती है और पुत्र के इच्छुकों को बहुत से पुत्रों की उपलब्धि होती है | 

विद्यार्थी लभते विद्यां योगार्थी योगमाप्नुयात् || 
गर्भिणी लभते पुत्रं कन्या विन्दति सत्पतिम् | 
विद्यार्थियों को विद्या मिलती है, योग के इच्छुकों को योग की सिद्धि होतो है | 
गर्भिणियों को पुत्र प्राप्ति होती है और कन्याओं को अच्छा पति मिलता है | 

यान्यान्कामयते कामान्मानवः श्रवणादिह || 
तान्सर्वान्शीघ्रमाप्नोति देवानां च प्रियो भवेत् | 
जिस मानव की जो कामना हो, वन सब इसके सुनने से शीघ्र ही पूरी होती है 
और वह देवताओं का प्रिय हो जाता है | 

श्रुत्वाऽध्यायमिदं पुण्यं सङ्ग्रामं प्रविशेन्नृपः || 
विनिर्जित्याशु तान्शत्रून् कल्याणैः परिपूर्यते | 
अक्षयं मोदतेऽकालं अतिरस्कृतशासनः || 
व्याधिभिर्नाभिभूयेत् पुत्र पौत्रैः प्रतिष्ठितः | 
जो इस अध्याय को सुनता है, उसका पुण्य यह है कि यदि इसे सुनकर राजा समरांगण में प्रवेश करता है तो वह शत्रुओं को जीतकर कल्याण की पूर्ति करता है और अक्षयकाल तक आनन्द करता है और बिना किसी बाधा के अनन्तकाल तक शासन संचालित करता है |
उसे कोई व्याधि नहीं होती, उसके पुत्र पौत्रों की प्रतिष्ठा बढ़ती है |   

पठ्यमानमिदं पुण्यं यमुद्दिश्य पठेन्नरः|| 
तस्य रोगा न बाधन्ते वातपित्तादि सम्भवाः | 
नाकाले मरणं तस्य न सर्पैश्चाऽपि दंश्यते || 
न विषं क्रमते देहे न जलान्धत्वमूकतः | 
नहि सर्पभयं तस्य न चोत्पातभयं तथा || 
नाभिचारकृतैर्दोषैः लिप्यते स कदाचन | 
इस अध्याय को पढ़ने से पुण्य मिलता है और जो जिस उद्देश्य को लेकर इसको पढ़ता है | इसके श्रोता को वात, पित्तादि से होने वाले रोग कभी बाधक नहीं बनते | 
उसका अकाल मरण नहीं होता, उसे सर्प भी डसते हैं | 
न तो उसकी देह में विष फैलता है, न ही आगजनी होती है | 
उसे न बन्धत्व होता है और न ही मूकता होती है | 
उसको सर्पों का भय नहीं रहता | चोरों तस्करों के उत्पातों का भय भी नहीं रहता | उस पर अभिचार का दोष भी नहीं चलता, वह कभी इसमें लिप्त नहीं होता है | 

यत्पुण्यं सर्वतीर्थानां गङ्गादिनां विशेषतः || 
तत्पुण्यं कोटिगुणितं प्राप्नोति श्रवणादिह | 
दशानां राजसूयानां अग्निष्टोम शतस्य च ||  
श्रवणात्फलमाप्नोति कोटिकोटि गुणोत्तरम् | 
      अवध्यः सर्वदेवानां अन्येषां च विशेषतः || 
जीवेद्वर्षशतं साग्रं सर्वव्याधि विवर्जितः | 
विशेषकर गंगा नदी सब तीर्थों की प्राप्ति से जो पुण्य मिलता है, उससे करोड़ 
गुना पुण्य इस अध्याय को केवल सुनने से सुलभ होता है | दस राजसूय 
और सौ अग्निष्टोम यज्ञों का फल केवल इसके श्रवण मात्रा से मिलता है, 
वह फल भी करोड़ करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है | वह सभी देवताओं के लिए अवध्य हो जाता है तो अन्य क्या विशेष है | वह सौ वर्ष तक जीवित रहता  है,जीवनावधि में उसे कोई व्याधि नहीं होती | 


गोघ्नश्चैव कृतघ्नश्च ब्रह्महा गुरुतल्पगः || 
शरणागतघाती च मित्रविश्रम्भघातकः | 
दुष्टः पापसमाचारः पितृहा मातृहा तथा || 
श्रवणादस्य भावेन मुच्यते सर्वपातकैः | 
अपने जीवन में गाय की हत्या करने वाला, कृतघ्न, ब्रह्महत्या करने वाला, गुरुपत्नीगमनकर्ता, शरणागत घातक, मित्र सहित विश्रामघातक, दुष्ट, पापी, पितृहत्यारा तथा मातृहत्यारा कोई भी क्यों न हो, 
इस अध्याय को भावपूर्वक सुनने से समस्त पापों से छूट जाता है | 

शान्त्याऽध्यायमिदं पुण्यं न देयं यस्य कस्यचित् || 
शिवभक्ते सदा देयं शिवेन कथितं पुरा | 
नित्यं खचितचित्तः स्यच्छक्ति व्याघात वर्जितः || 
सर्वकाम समृद्धस्तु यः पठेत दिने दिने | 
इस शान्त्याध्याय का पुण्य किसी ऐसे वैसे को नहीं देना चाहिए बल्कि शिवभक्त को ही देना चाहिए, ऐसा भगवान् शिव ने पूर्व में कहा है | 
नित्य एकाग्रचित्त होकर बिना कोई जोर लगाए अर्थात् सहजमना होकर पढ़ा जाना चाहिए | इस तरह पढ़ने से दिन दिन समस्त कामों में समृद्धि होती जाती है | 

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karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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