भुवनेश्वरीकात्यायनी स्तुतिः | Bhuvneshvari Katyaayni Stuti |

 

भुवनेश्वरीकात्यायनी स्तुतिः

भुवनेश्वरीकात्यायनी स्तुतिः


|| ध्यानम् ||
ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम् |
स्मेरमुखीं वरदाड्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशिम् ||
|| ध्यान ||

मैं भुवनेश्वरी देविका ध्यान करता हूँ |
उसके श्रीअंगोंकी आभा प्रभातकालके सूर्यके समान है और
मस्तकपर चन्द्रमाका मुकुट है |
वे उभरे हुए स्तनों और तीन नेत्रोंसे युक्त हैं |
उनके मुखपर मुसकानकी छटा छायी रहती है और
हाथोंमें वरद, अंकुश, पाश एवं अभय मुद्रा शोभा पाते हैं |

|| स्तुतिः ||
देवी प्रपन्नार्तिकरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य || १ ||

स्तुति 
देवता बोले
शरणागतकी पीड़ा दूर करनेवाली देवि, हमपर प्रसन्न हो |
संपूर्ण जगत्की माता, प्रसन्न हो |
विश्वेश्वरि विश्वकी रक्षा करो |
देवि, तुम्हीं चराचर जगत्की अधीश्वरी हो || १ ||


आधारभूत जगतस्त्वमेका
महीस्वरुपेण यतः स्थितासि |
अपां स्वरुपस्थितया त्वयैत
दाप्यायते कृत्स्नमलड्घ्यवीर्ये || २ ||

तुम इस जगत्का एकमात्र आधार हो, क्योंकि पृथ्वीरुपमें तुम्हारी ही स्थिति है |
देवि, तुम्हारा पराक्रम अलंघनीय है |
 तुम्हीं जलरुपमें स्थित होकर सम्पूर्ण जगत्को तृप्त करती हो || २ ||


त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया |
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः || ३ ||

तुम अनन्त बलसम्पन्न वैष्णवी शक्ति हो |
इस विश्वकी कारणभूता परा माया हो |
देवि, तुमने इस समस्त जगत् को मोहित कर रखा है |
तुम्हीं प्रसन्न होनेपर इस पृथ्वीपर मोक्षकी प्राप्ति कराती हो || ३ ||


विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु |
त्वयैकाया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः || ४ ||

देवि, समपूर्ण विद्याएँ तुम्हारेपर ही भिन्न भिन्न स्वरुप हैं |
जगत्में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं |
जगदम्ब, एकमात्र तुमने ही इस स्तवन करनेयोग्य पदार्थोंसे परे
एवं परा वाणी हो || ४ ||


सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी |
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः || ५ ||

जब तुम सर्वस्वरूपा देवी स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाली हो, तब इसी रुपमें तुम्हारी स्तुति हो गयी |
तुम्हारी स्तुतिके लिये इससे अच्छी उक्तियाँ क्या हो सकती है ? || ५ ||


सर्वस्व बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते |
  स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते || ६ ||

बुद्धिरुपसे सब लोगोंके हृदयमें विराजमान रहनेवाली तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली नारायणी देवि, तुम्हें नमस्कार है || ६ ||


कलाकाष्ठादिरुपेण परिणामप्रदायिनि |
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते || ७ ||

कला, काष्ठा आदिके रुपसे क्रमशः परिणाम की ओर ले जानेवाली तथा विश्वका उपसंहार करनेमें समर्थ नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || ७ ||


सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके |
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते || ८ ||

नारायणि, तुम सब प्रकारका मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो |
कल्याणदायिनी शिवा हो |
सब पुरुषार्थोंको सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली गौरी हो |
तुम्हें नमस्कार है || ८ ||


सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि |
         गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते || ९ ||

तुम सृष्टि, पालन और संहारकी शक्तिभूता, सनातनी देवी,
गुणोंको आधार तथा सर्वगुणमयी हो |
नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || ९ ||

 
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे | 
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते || १० ||

शरणागतों, दीनों एवं पीड़ितोंकी रक्षामें संलग्न रहनेवाली तथा
सबकी पीड़ा दूर करनेवाली नारायणि देवि, तुम्हें नमस्कार है || १० ||


हंसयुक्तविमानस्थे ब्रह्माणीरुपधारिणि |
कौशाम्भःक्षरिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते || ११ ||

नारायणि, तुम ब्रह्मणिका रुप धारण करके हंसोंसे जुते हुए विमानपर बैठती तथा कुश मिश्रित जल छिड़कर रहती हो |
तुम्हें नमोऽस्तु ते || ११ ||


त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि |
माहेश्वरीस्वरुपेण नारायणि नमोऽस्तु ते || १२ ||

माहेश्वरीरुपसे त्रिशूल, चन्द्रमा एवं सर्पको धारण करनेवाली तथा महान् वृषभकी पीठपर वैठनेवाली नारायणि देवि, तुम्हें नमोऽस्तु ते || १२ ||


मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेऽनघे |
कौमारीरुपसंस्थाने नारायणि नमोऽस्तु ते || १३ ||

मोरों और मुर्गोंसे घिरे रहनेवाली तथा महाशक्ति धारण करनेवाली कौमारिरुपधारिणी निष्पापे नारायणि, तुम्हें नमोऽस्तु ते || १३ ||


शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे |
प्रसीद वैष्णवीरुपे नारायणि नमोऽस्तु ते || १४ ||

शंख,चक्र, गदा और शार्ङ्गधनुषरुप उत्तम आयुधोंको धारण करनेवाली
वैष्णवी शक्तिरुपा नारायणि,
तुम प्रसन्न हो, तुम्हें नमस्कार है || १४ ||


गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद् धृतवसुंधरे |
वराहरुपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तु ते || १५ ||

हाथमें भयानक महाचक्र लिये और दाढ़ोंपर धरतीको उठाये वराहीरुपधारिणी कल्याणमयी नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || १५ ||


नृसिंहरुपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे |
त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमोऽस्तु ते || १६ ||

भयंकर नृसिंहरूपसे दैत्योंके वधके लिये उद्योग करनेवाली तथा त्रिभुवनकी रक्षामें संलग्न रहनेवाली नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || १६ ||


किरीटिनि महावज्रे सहस्त्रनयनोज्ज्वले |
वृत्रप्रानहरे चैन्द्रि नारायणि नमोऽस्तु ते || १७ ||

मस्तकपर किरीट और हाथमें महावज्र धारण करनेवाली,सहस्त्र नेत्रोंके कारण उद्दीप्त दिखायी देनेवाली और वृत्रासुरके प्राणोंका अपहरण करनेवाली
इन्द्रशक्तिरुपा नारायणि देवि, तुम्हें नमस्कार है || १७ ||


शिवदूतीस्वरुपेण हतदैत्यमहाबले |
घोररुपे महारावे नारायणि नमोऽस्तु ते || १८ ||

शिवदूतीरुपसे दैत्योंकी महती सेनाका संहार करनेवाली, भयंकर रुप धारण तथा विकट गर्जना करनेवाली नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || १८ ||


दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे |
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते || १९ ||

दाढ़ोंके कारण विकराल मुखवाली, मुण्डमालासे विभूषित मुण्डमर्दिनी चामुण्डारुपा नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || १९ ||


लक्ष्मि लज्जे महाविद्या श्रद्धे पुष्टिस्वधे ध्रुवे |
महारात्रि महाऽविद्ये नारायणि नमोऽस्तु ते || २० ||

लक्ष्मी, लज्जा, महाविद्या, श्रद्धा, पुष्टि, स्वधा, ध्रुवा, महारात्रि तथा महा अविद्यारुपा नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || २० ||


मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि |
नियते त्वं प्रसिदेशे नारायणि नमोऽस्तु ते || २१ ||

मेधा, सरस्वती, वरा, भूति, बाभ्रवी, तामसी, नियता तथा ईशा रुपिणी
नारायणि, तुम्हें नमस्कार है || २१ ||


सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते |
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते || २२ ||

सर्वस्वरुपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकारकी शक्तियोंसे सम्पन्न दिव्यरुपा दुर्गे देवि, सब भयोंसे हमारी रक्षा करो, तुम्हें नमस्कार है || २२ ||


एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् |
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते || २३ ||

कात्यायनि, यह तीन लोचनोंसे विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकारके भयोंसे
हमारी रक्षा करे, तुम्हें नमस्कार है || २३ ||

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् |
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते || २४ ||

भद्रकालि, ज्वालाओंके कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरोंका संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भयसे हमें बचाये |
तुम्हें नमस्कार है || २४ ||


हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् |
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव || २५ ||

देवि, जो अपनी ध्वनिसे सम्पूर्ण जगत्को व्याप्त करके दैत्योंके तेज नष्ट किये देता है, 
वह तुम्हारा घण्टा हमलोगोंकी पापोंसे उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे पिता अपने पुत्रोंकी बुरे कर्मोंसे रक्षा करता है || २५ ||


असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्ज्वलः |
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् || २६ ||

चण्डिके, तुम्हारे हाथोंमें सुशोभित खड्ग, जो असुरोंके रक्त और चर्बीसे चर्चित है,
हमारा मंगल करे | हम तुम्हें नमस्कार करते है || २६ ||


रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् |
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति || २७ ||

देवि, तुम प्रसन्न होनेपर सब रोगोंको नष्ट कर देती हो और कुपित होनेपर मनोवांछित सभी कामनाओंका नाश कर
देती हो | जो लोग तुम्हारी शरणमें हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं,
तुम्हारी शरणमें गये हुए मनुष्य दूसरोंको शरण देनेवाले हो जाते हैं || २७ ||


एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य
धर्मद्विषां देवि महासुराणाम् |
रुपैरनेकैर्बहुधाऽऽत्ममूर्ति
कृत्वाम्बिके तत्प्रकरोति कान्या || २८ ||

देवि, अम्बिके, तुमने अपने स्वरुपको अनेक रुपोंमें विभक्त करके नाना प्रकारसे जो इस समय इन धर्मद्रोही महादैत्योंका संहार किया है,
 वह सब दूसरी कौन कर सकती थी ? || २८ ||


विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपे
ष्वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या |
ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे
विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् || २९ ||

विद्याओंमें, ज्ञानको प्रकाशित करनेवाले शास्त्रोंमें तथा आदिवाक्यों में तुम्हारे सिवा और किसका वर्णन है ?
तथा तिम्को छोड़कर दूसरी कौन ऐसी शक्ति है, जो इस विश्वको मोह ममताके घने अन्धकार चक्रमें निरन्तर भटका सके || २९ ||


रक्षांसि यत्रोग्रविशाश्च नागा
यत्रारयो दस्युबलानि यत्र |
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वं || ३० ||

जहाँ राक्षस, भयंकर विषवाले सर्प, शत्रु, लुटेरोंकी सेना और दावानल हो, वहाँ तथा समुद्रके बीचमें भी साथ रहकर तुम सबकी रक्षा करती हो || ३० ||


विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विशवम् |
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः || ३१ ||

विश्वेश्वरि तुम विश्वका पालन करती हो | विश्वरुपा हो, इसलिए सम्पूर्ण विश्वको धारण करती हो | तुम भगवान् विश्वनाथकी भी वन्दनीया हो | जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्वको आश्रय देनेवाले होते हैं || ३१ ||


देवि प्रसीद परिपालक नोऽरीभिते
र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः |
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् || ३२ ||

देवि प्रसन्न होओ जैसे इस समय असुरोंका वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओंके भयसे बचाओ |
सम्पूर्ण जगत्का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापोंके फलस्वरुप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बड़े बड़े उपद्रवोंको शीघ्र दूर करो || ३२ ||


प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि |
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकनां वरदा भव || ३३ ||

विश्वकी पीड़ा दूर करनेवाली देवि हम तुम्हारे चरणोंपर पड़े हुए हैं,
हमपर प्रसन्न होओ |
त्रिलोकनिवासियोंकी पूजनीया परमेश्वरि सब लोगोंको वरदान दो || ३३ ||

|| इति श्री मार्कण्डेयमहापुराणकी भुवनेश्वरी कात्यायनीस्तुति सम्पूर्णम् ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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