भद्रा की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? भद्रा क्या है ? Bhadra kya hota hai ?

 

भद्रा की उत्पत्ति कैसे हुई थी ?

भद्रा व्रत कथा 
भद्रा के 12 नाम 

भद्रा की उत्पत्ति कैसे हुई थी ?



राजा युधिठिर ने पूछा - 
हे भगवन लोक में विष्टि भद्रा नाम प्रसिद्द है और भयंकर है 
कौन है भद्रा किसकी कन्या है यह ? क्या है विधि ?

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा - 
राजन यह भद्रा भगवान् श्रीसूर्य की कन्या है | 
 यह सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न हुई है | 
और शनिदेव की सगी बहन है | 

भद्रा का स्वरुप 
वह काले वर्ण,लम्बे काले केश,बड़े बड़े दांत,
और भयंकर रूपवाली है | जन्मते ही वह संसार को ग्रास करने के लिए दौड़ी थी | 
यज्ञो में बाधा-मांगलिक कार्यो में बाधा और उपद्रव करने लगी थी | 
पुरे विश्व को हानि पहुंचने लगी थी | 
उसके इस स्वभाव को देखकर भगवान् सूर्य सदैव चिंतित रहने लगे | 
फिर उन्होंने उसका विवाह करने का निश्चय किया | 
जब जब जिस देवता या असुर या किन्नर आदिसे सूर्यनारायण ने प्रस्ताव रखा 
तब कोई भी इस भयङ्कर कन्या से विवाह करने को तैयार नहीं हुआ | 
दुखित हो सूर्य ने अपनी कन्या के लिये विवाह मंडप बनवाया था | 
भद्रा ने उस मंडप को उखाड़कर फेक दिया था | 
उसी समय ब्रह्माजीवहा आये उन्हें देखकर सूर्य नारायण ने कहा -
ब्रह्मन्, आप ही तो इस संसारके कर्ता तथा भर्ता हैं,
फिर आप मुझसे ऐसा क्यों कह रहे हैं |
जो भी आप उचित समझें वही करें |
सूर्यनारायणका ऐसा वचन सुनकर ब्रह्माजीने विष्टिको बुलाकर कहा,
भद्रे वव, बालव, कौलव आदि करणोंके अन्तमें तुम निवास करो
और जो व्यक्ति यात्रा, प्रवेश, माङ्गल्य कृत्य, खेती, व्यापार,
ऊद्योग आदि कार्य तुम्हारे समयमें करे,उन्हींमें तुम विघ्न करो |
तीन दिनतक किसी प्रकारकी बाधा न डालो |
चौथे दिनके आधे भागमें देवता और असुर तुम्हारी पूजा करेंगे |
जो तुम्हारा आदर न करें उनका कार्य तुम ध्वस्त कर देना |
इस प्रकार विष्टिको उपदेश देकर ब्रह्माजी अपने धामको चले गये,
इधर विष्टि भी देवता, दैत्य,मनुष्य सब प्राणियोंको कष्ट देती हुई घूमने लगी |
महाराज, इस तरहसे भद्राकी उत्पत्ति हुई औरवह अति दुष्ट प्रकृतिकी है,
इसलिये माङ्गलिक कार्योंमें उसका अवश्य त्याग करना चाहिये |

भद्रा का वास कहा है ?
भद्रा पाँच घड़ी मुखमें, 
दो घड़ी कण्ठमें, 
ग्यारह घड़ी हृदयमें,
चार घडी नाभि में,
पांच घडी कटी में,
तीन घडी पुच्छ में रहती है | 

भद्रा के निवास से क्या होता है ?
भद्रा पाँच घड़ी मुखमें - कार्य नाश 
दो घड़ी कण्ठमें - धनका नाश 
ग्यारह घड़ी हृदयमें - प्राणका नाश 
चार घडी नाभि में- कलह होना 
पांच घडी कटी में- अर्थभ्रंश होना 
तीन घडी पुच्छ में - निश्चितरूप से विजय और कार्य सिद्धि मिलती है | 

भद्रा के 12 नाम
 धन्या दधिमुखी भद्रा महामारीखरारना | 
कालरात्रिर्महारुद्रा विष्टिश्च कुलपुत्रिका || 
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयंकरी | 
द्वादशैव तु नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत || 
न च व्याधिर्भवेत् तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते | 
ग्रहाःसर्वेऽनुकूला स्युर्न च विघ्नादि जायते || 
रणे राजकुले द्यूते सर्वत्र विजयी भवेत् || 

१ - धन्या 
२ - दधिमुखी 
३ - भद्रा 
४ - महामारी 
५ - खरानना 
६ - कालरात्रि 
७ - महारुद्रा 
८ - विष्टि 
९ - कुलपुत्रिका 
१० - भैरवी 
११ - महाकाली 
१२ - असुरक्षयकारी 

इन बारह नामो का प्रातः काल पाठ करने से या जो करता है उसे 
कभी व्याधिका भय नहीं होता | 
रोगी रोगमुक्त हो जाता है 
सभी ग्रह अनुकूल हो जाते है 
कार्यमे कोई विघ्न नहीं आते 
युद्धमे राजकुल में विजय प्राप्त होता है 
जो विधिपूर्वक इसका पाठ करता है 
निःसंदेह उसके कार्य सिद्ध हो जाते है | 

भद्राव्रत की विधि 
राजन जिस दिन भद्रा हो उस दिन उपवास करना चाहिये | 
यदि रात्रि के समय हो तो दो दूसरे दिन एक भुक्त करना चाहिये | 
एक प्रहार के बाद भद्रा हो तो तीन प्रहार तक उपवास करना चाहिये | 
या फिर एक समय भुक्त करना चाहिये | 
जिस दिन यह व्रत करे उस दिन आमला लगाकर स्नान करे | 
( चाहे तो उस दिन पितृ तर्पण कर सकते है,देवताओ का पूजन भी कर सकते है )
कुशा से भद्रा की मूर्ति बनाये और उसकी पूजा करे | 
उसके बाद भद्रा के 12 नामो से 108 बार यज्ञ करना चाहिये | 
यज्ञ के लिये सफेदतिल,घी,पायस,गोमय आदि का प्रयोग करना चाहिये | 

फिर पूजन के अंत में प्रार्थना करे 
ॐ छायासूर्यसुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनी | 
पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्रभद्रा भव || 

इसके पश्चात जब भी इस व्रत की समाप्ति करे तब इसका उद्यापन करना चाहिये | 
लोहेकी पीठपर भद्रकी मूर्ति स्थापित कर कालावस्त्र पहनकर प्रार्थना करे | 
काले रंग की वस्तुओ का दान करे | 
और कुशा की भद्रामूर्ति भी दान कर दे ब्राह्मण को | 
ऐसे व्रत करनेवाले या जो भी यह व्रत करता है 
उसको कभी प्रेतपीड़ा,पिशाचपीडा,डाकिनी-शाकिनीपीड़ा नहीं होती
ग्रहपीड़ा कभी नहीं होगी | और सूर्यलोक की प्राप्ति होगी | 

|| अस्तु || 














karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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