गणेश और तुलसी कथा | गणेशजी को तुलसी क्यों नहीं चढ़ा सकते ? Ganesh Tulsi Katha |

 
गणेश और तुलसी कथा 
गणेशजी को तुलसी क्यों नहीं चढ़ा सकते ?
गणेश और तुलसी कथा

श्री नारायण कहते है
परशुरामजी ने हर्षित होकर माँ दुर्गा की स्तुति की
पश्चात श्रीहरिने उन्हें गणेशस्तोत्र बताया था और उसी स्तोत्र से
 पूजन का विधान बताया था और परशुराम उन्ही स्तोत्र से अलग अलग उपचारो से
पत्र पुष्प आदि से गणपति को पूजा करने लगे | सुगन्धित पुष्पों से चन्दन से पत्रों से पूजा की किन्तु तुलसी पत्र नहीं प्रयोग किये | यह देखकर नारदमुनि आश्चर्यचकित हो गए | नारदमुनि ने पूछा - प्रभो परशुरामने जब विविध नैवेद्यों तथा पुष्पोंद्वारा भगवान्
गणेशकी पूजा की थी,
उस समय उन्हींने तुलसीको छोड़ क्यों दिया ?
मनोहारिणी तुलसी तो समस्त पुष्पोंमें मान्य एवं धन्यवादकी पात्र हैं,
फिर गणेश उस सारभूत पूजको क्यों नहीं ग्रहण करते ?


श्रीनारायण बोले
नारद, ब्रह्मकल्पमें ऐसी घटना घटित हुई थी, जो परम गुह्य एवं मनोहारिणी है |
उस प्राचीन इतिहासको मैं कहता हूँ,
सुनो, एक समयकी बात है |
नवयौवन सम्पन्ना तुलसीदेवी नारायणपरायण हो तपस्याके निमित्तसे तीर्थोंमें
भ्रमण करती हुई गङ्गा तटपर जो पहुँचीं |
वहाँ उन्होंने गणेशको देखा, जिनकी नयी जवानी थी,
जो अत्यन्त सुन्दर, शुद्ध और पीताम्बर धारण किये हुए थे, जो रत्नोंके आभुषणोंसे
विभूषित थे, सुन्दरता जिनके मनका अपहरण नहीं कर सकती,
जो योगीन्द्रोंके गुरु के गुरु हैं तथा मन्द मन्द मुस्कुराते हुए जन्म, मृत्यु और बुढ़ापाका नाश करनेवाले श्रीकृष्णके चरणकमलोंका ध्यान कर रहे थे,
उन्हें देखते ही तुलसीका मन गणेशकी ओर आकर्षित हो गया |
तब तुलसी उनसे लम्बोदर तथा गजमुख होनेका कारण पूछकर
उनका उपहास करने लगी |
ध्यान भङ्ग होनेपर गणेशजीने पूछा, वत्से तुम कौन हो ?
किसकी कन्या हो ? यहाँ तुम्हारे आनेका क्या कारण है ?
माता, यह मुझे बतलाओं, क्योंकि शुभे तपस्वियोंका ध्यान भङ्ग करना सदा पापजनक तथा अमङ्गलकारी होता है |
शुभे, श्रीकृष्ण कल्याण करें, कृपानिधि विघ्नका विनाश करें और मेरे ध्यान भङ्गसे उत्पन्न हुआ दोष तुम्हारे लिये अमङ्गलकारक न हो |


इसपर तुलसीने कहा
प्रभो, मैं धर्मात्मजकीनवयुवती कन्या हूँ और तपस्यामें संलग्न हूँ |
मेरी यह तपस्या पति प्राप्तिके लिये है, अतः आप मेरे स्वामी हो जाइये |
तुलसीकी बात सुनकर अगाध बुद्धिसम्पन्न गणेश श्रीहरिका स्मरण करते हुए विदुषी तुलसीसे मधुरवाणीमें बोले |


गणेशने कहा
हे माता, विवाह करना बड़ा भयंकर होता है, अतः इस विषयमें मेरी बिलकुल इच्छा नहीं है, क्योंकि विवाह दुःखका कारण होता है, उससे सुख कभी नहीं मिलता |
यह हरी भक्तिका व्यवधान, तपस्याके नाशका कारण,
मोक्षद्वारका किवाड़, भय बन्धनकी रस्सी,
गर्भवासकारक, सदा तत्त्वज्ञानका छेदन और संशयोंका उद्गमस्थान है |
इसलिये महाभागे, मेरी ओरसे मन लौटा लो और किसी अन्य पतिकी तलाश करो |
गणेशके ऐसे वचन सुनकर तुलसीको क्रोध आ गया |
तब वह साध्वी गणेशको शाप देते हुए बोली, तुम्हारा विवाह होगा |
यह सुनकर शिव तनय सुरश्रेष्ट गणेशने भी तुलसीको शाप दिया,
देवि, तुम निस्संदेह असुरद्वारा ग्रस्त होओगी |
तत्पश्चात् महापुरुषोंके शापसे तुम वृक्ष हो जाओगी |
नारद, महातपस्वी गणेश इतना कहकर चुप हो गये |
उस शापको सुनकर तुलसीने फिर उस सुरश्रेष्ठ गणेशकी स्तुति ही |
तब प्रसन्न होकर गणेशने तुलसीसे कहा |


गणेश बोले
मनोरमे, टीम पुष्पोंकी सारभूता होओगी और
कलांशसे स्वयं नारायणकी प्रिया बानगी |
महाभागे, यों तो सभी देवता तुमसे प्रेम करेंगे, परंतु श्रीकृष्णके लिये तुम विशेष प्रिय होओगी | तुम्हारे द्वारा की गयी पूजा मनुष्योंके लिये मुक्तिदायिनी होगी और
मेरे लिये तुम सर्वदा त्याज्य रहोगी |
तुलसीसे यों कहकर सुरश्रेष्ठ गणेश पुनः तप करने चले गये |
वे श्रीहरिकी आराधनामें व्यग्र होकर बदरीनाथके संनिकट गये |
इधर तुलसीदेवी दुःखित हृदयसे पुष्करमें जा पहुँची और
निराहार रहकर वहाँ दीर्घकालिक तपस्यामें संलग्न हो गयी |
नारद, तत्पश्चात् मुनिवरके तथा गणेशके शापसे 
वह चिरकालतक शङ्खचूडकी प्रिय पत्नी बनी रही |
मुने, तदनन्तर असुरराज शङ्खचूड शंकरजीके त्रिशूलसे मृत्युको प्राप्त हो गया,
तब नारायणप्रिया तुलसी कलांशसे वृक्षभावको प्राप्त हो गयी |
यह इतिहास, जिसका मैंने तुमसे वर्णन किया है, पूर्वकालमें धर्मके मुखसे सुना था |
इसका वर्णन अन्य पुराणोंमें नहीं मिलता |
यह तत्त्वरुप तथा मोक्ष प्रदान करनेवाला है |
तदनन्तर महाभाग परशुराम गणेशका पूजन करके तथा शंकर और पार्वतीको
नमस्कार कर तपस्याके लिये वनको चले गये |
इधर गणेश समस्त सुरश्रेष्ठों तथा मुनिवरोंसे वन्दित 
एवं पूजित होकर शिव पार्वतीके निकट स्थित हुए |

जो मनुष्य इस गणपतिखण्डको दत्तचित्त होकर सुनता है, 
उसे निश्चय ही राजसूययज्ञके फलकी प्राप्ति होती है |
पुत्रहीन मनुष्य श्रीगणेशकी कृपासे धीर, वीर, धनी, गुणी, चिरजीवी, यशस्वी, पुत्रवान्, विद्वान्, श्रेष्ठ कवि, जितेन्द्रियोंमें श्रेष्ठ, समस्त सम्पदाओंके दाता,
परम पवित्र, सदाचारी, प्रशंसनीय, विष्णुभक्त, अहिंसक, दयालु और
तत्त्वज्ञानविशारद पुत्र पाता है |
महावन्ध्या स्त्री वस्त्र, अलंकार और चन्दनद्वाराभक्तिपूर्वक गणेशकी पूजा करके
और इस गणपतिखण्डको सुनकर पुत्रको जन्म देती है |
जो मनुष्य नियमपरायण हो मनमें किसी कामनाको लेकर इसे सुनता है,
सुरश्रेष्ठ गणेश उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण कर देते हैं |
विघ्ननाशके लिये यत्नपूर्वक इस गणपतिखण्डकोसुनकर वाचकको सोनेका यज्ञोपवीत, श्वेत छत्र, श्वेत अश्व, श्वेतपुष्पोंकी माला, स्वस्तिक मिष्ठान्न,
तिलके लड्डू और देशकालोद्भव पके हुए फल प्रदान करना चाहिये |

|| अस्तु || 

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

Post a Comment

Previous Post Next Post