फाल्गुन पूर्णिमोत्सव | Falgun Purnimostav |

 फाल्गुन पूर्णिमोत्सव

फाल्गुन पूर्णिमोत्सव



महाराज युधिष्ठिरने पूछा -

भगवान्, फाल्गुनकी पूर्णिमाको ग्राम ग्राम तथा नगर नगरमें उत्सव क्यों मनाया जाता है और गाँवों एवं नगरोंमें होली क्यों जलायी जातीहै ?

क्या कारण है कि बालक उस दिन घर घर अनाप शनाप शोर मचाते हैं ?

अडाडा किसे कहते हैं, उसे शीतोष्ण क्यों कहा जाता है तथा किस देवताका पूजन किया जाता है

आप कृपाकर यह बतानेका कष्ट करें |


भगवान् श्री कृष्णने कहा -

पार्थ, सत्ययुगमें रघु नामके एक शूरवीर प्रियवादी

सर्गगुणसम्पन्न दानी राजा थे |

उन्होंने समस्त पृथ्वीको जीतकर सभी राजाओंको अपने वश में करके पुत्रकी भाँति प्रजाका लालन पालन किया |

उनके राज्यमें कभी दुर्भिक्ष नहीं हुआ और किसीकी अकाल मृत्यु हुई

अधर्ममें किसीकी रुचि नहीं थी |

पर एक दिन नगरके लोग राजद्वारपर सहसा एकत्र होकर

त्राहि त्राहि पुकारने लगे | राजाने इस तरह भयभीत लोगोंसे कारण पूछा | 

उन लोगोंने कहा कि महाराज, ढोंढा नामकी एक राक्षसी प्रतिदिन हमारे बालकोंको कष्ट देती है और उसपर किसी मन्त्र तन्त्र, ओषधि आदिका प्रभाव भी नहीं हो पा रहा है | नगरवसियों का यह वचन सुनकर विस्मित राजाने राज्यपुरोहित महर्षि वसिष्ठमुनिसे उस राक्षसीके विषयमेंपूछा |

तब उन्होंने राजासे कहा राजन, माली नामका एक दैत्य है, उसीकी एक पुत्री है,

जिसका नाम है ढोंढा | उसने बहुत समयतक उग्र तपस्या करके शिवजीको प्रसन्न किया | उन्होंने उससे वरदान माँगनेको कहा |

इसपर ढोंढाने यह वरदान माँगा कि प्रभो,

देवता, दैत्य, मनुष्य आदि मुझे मार सकें तथा अस्त्र शस्त्र आदिसे भी मेरा वध हो, साथ ही दिनमें, रात्रिमें, शीतकाल, ऊष्णकाल तथा वर्षाकालमें, भीतर अथवा बाहर कहीं भी मुझे किसीसे भय हो |

इसपर भगवान् शंकरने तथास्तु कहकर यह भी कहा कि तुम्हें उन्मत्त बालकोंसे भय होगा | इस प्रकार वर देकर भगवान् शिव अपने धामको चले गये |

वहीं ढोंढा नामकी कामरुपिणी राक्षसी नित्य बालकोंको और

प्रजाको पीड़ा देती है |

अडाडा मन्त्रका उच्चारण करनेपर वह ढोंढा शान्त हो जाती है |

इसलिये उसको अडाडा भी कहते हैं | यही उस राक्षसी ढोंढाका चरित्र है |

अब मैं उससे पीछा छुड़ानेका उपाय बता रहा हूँ |


राजन्, आज फाल्गुन मासके शुक्ल पक्षकी पूर्णिमा तिथिको सभी लोगोंको निडर होकर क्रीडा करनी चाहिये और नाचना, गाना तथा हँसना चाहिये |

बालक लकड़ियोंके बने हुए तलवार लेकर वीर सैनिकोंकी भाँति हर्षसे युद्धके लिये उत्सुक हो दौड़ते हुए निकल पड़ें और आनन्द मनायें |

सूखी लकड़ी, उपले, सूखी पत्तियाँ आदि अधिक से अधिक एक स्थानपर इकट्ठाकर उस ढेरमें रक्षोघ्र मन्त्रोंसे अग्नि लगाकर उसमें हवनकर हँसकर ताली बजाना चाहिये | उस जलते हुए ढेरकी तीन बार परिक्रमा कर बच्चे, बूढ़े सभी आनन्ददायक विनोदपूर्ण वार्तालाप करें और प्रसन्न रहें |

इस प्रकार रक्षामन्त्रोंसे, हवन करनेसे, कोलाहल करनेसे तथा बालकों द्वारा तलवारके प्रहारके भयसे उस दुष्ट राक्षसीका निवारण हो जाता है |


वसिष्ठजीका यह वचन सुनकर राजा रघुने सम्पूर्ण राज्यमें लोगोंसे इसी प्रकार उत्सव करनेको कहा और स्वयं भी उसमें सहयोग किया, जिससे वह राक्षसी विनष्ट हो गयी | उसी दिनसे इस लोकमें ढोंढाका उत्सव प्रसिद्ध हुआ और अडाडाकी परम्परा चली | ब्राह्मणों द्वारा सभी दुष्टों और सभी रोगोंको शान्त करनेवाला वसोर्धारा होम इस दिन किया जाता है, इसलिये इसको होलिका भी कहा जाता है | सब तिथियोंका सार एवं परम आनन्द देनेवाली यह फाल्गुनकी पूर्णिमा तिथि है |

इस दिन रात्रिको बालकोंकी विशेषरुपसे रक्षा करनी चाहिये |

गोबरसे लिपे पुते घरके आँगनमें बहुतसे खड्गहस्त बालक बुलाने चाहिये और घरमें रक्षित बालकोंको काष्ठनिर्मित खड्गसे स्पर्श कराना चाहिये |

हँसना, गाना, बजाना, नाचना आदि करके उत्सवके बाद गुड़ और बढ़िया पकवान देकर बालकोंको विसर्जित करना चाहिये |

इस विधिसे ढोंढाका दोष अवश्य शान्त हो जाता है |


महाराज युधिष्ठिरने पूछा -

भगवान्, दूसरे दिन चैत्र माससे वसन्त ऋतुका आगमन होता है,

उस दिन क्या करना चाहिये ?


भगवान् श्रीकृष्णने कहा -

महाराज, होलीके दूसरे दिन प्रतिप्रदामें प्रातःकाल उठकर आवश्यक नित्यक्रियासे निवृत हो पितरों और देवताओंके लिये तर्पण पूजन करना चाहिये और सभी दोषोंकी शान्तिके किये होलिकाकी विभूतिकी वन्दना कर उसे अपने शरीरमें लगाना चाहिये | घरके आँगनको गोबरसे लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाये और उसे रंगीन अक्षतोंसे अलंकृत करे |

उसपर एक पीठ रखे |

पीठपर सुवर्णसहित पल्लवोंसे समन्वित कलश स्थापित करे | उसी पीठपर श्वेत चन्दन भी स्थापित करना चाहिये |

सौभाग्यवती स्त्रीको सुन्दर वस्त्र, आभूषण पहनकर दही, दूध, अक्षत, गन्ध,

पुष्प, वसोर्धारा आदिसे उस श्रीखण्डकी पूजा करनी चाहिये |

फिर आम्रमञ्जरीसहित उस चन्दनका प्राशन करना चाहिये |

इससे आयुकी वृद्धि, आरोग्यकी प्राप्ति तथा समस्त कामनाएँ सफल होती हैं |

भोजनके समय पहले दिनका पकवान थोड़ा सा खाकर इच्छानुसार भोजन भोजन करना चाहिये | इस विधिसे जो फाल्गुनोत्सव मनाता है, उसके सभी मनोरथ अनायात ही सिद्ध हो जाते हैं | आधि व्याधि सभीका विनाश हो जाता है और वह पुत्र, पौत्र, धन धान्यसे पूर्ण हो जाता है |

यह परम पवित्र, विजयदायिनी पूर्णिमा सब विघ्नोंको दूर करनेवाली है तथा सब तिथियोंमें उत्तम है |


|| अस्तु ||

karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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