शौच या मूत्रत्याग के समय जनेऊ को क्यों कान पे लगाते है ? janeu ko kyu kaan pe lagaate hai ?


शौच या मूत्रत्याग के समय जनेऊ को क्यों कान पे लगाते है ?

शौच या मूत्रत्याग के समय जनेऊ को क्यों कान पे लगाते है ? janeu ko kyu kaan pe lagaate hai ?
शौच या मूत्रत्याग के समय जनेऊ को क्यों कान पे लगाते है ?


जनेऊ-यज्ञोपवीत भिन्न भिन्न नामो से हम इसे पहचानते है |
 लेकिन क्या आपको पता है मल-मूत्र के त्यागते समय इसे क्यों कान पे धारण किया जाता है ? 
या कान पे लपेटा जाता है ? 
क्या सम्भोग के समय जनेऊ को पहनना चाहिए ?
जनेऊ को दाहिने कान पे ही क्यों लपेटते है ?
इस विषय में हमारे ग्रंथो में विस्तार से वर्णन मिलता है | 
शांख्यायन के अनुसार ब्राह्मण के दाहिने कान में आदित्य,व सु, रूद्र, वायु और अग्निदेवता का वास होता है | 
पाराशर के मतानुसार गङ्गा आदि नदियाँ और सभी तीर्थ ब्राह्मण के दाहिने कान में निवास करते है | 
साथ ही यज्ञोपवीत संस्कार के समय इसी जनेऊ के ऊपर ॐ कार आदि देवताओ का आवाह्न किया जाता है तो उन सभी देवताओ की पवित्रता को बनाये रखने के लिए अवश्य जनेऊ को मलमूत्र के समय कमर से ऊपर रखना ही चाहिए ताकि उन सभी देवताको प्रसन्नता हम प्राप्त कर सके और पवित्रता को हम बरक़रार रख सके |  

पुराणों के अनुसार देखे तो 
कूर्मपुराण कहता है 
निधाय दक्षिणे कर्णे ब्रह्मसूत्रमुदंगमुखः | 
अघ्नि कुर्याच्छ्कृण्मूत्रम रात्रौ चेद दक्षिणामुखः || ( कूर्मपुराण )
अर्थात दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाकर दिन में उत्तरदिशा की और मुख रखकर 
तथा रात्रिमे दक्षिण दिशा की और मुख रखकर मलमूत्र का त्याग करना चाहिए || 

साथ ही साथ जनेऊ की पवित्रता बानी रहे उसके लिए भी जनेऊ को कान पर पहनने का विधान है 
ऐसा कुछ विद्वानों का मत है | 
ताकि जब जनेऊ कान पर लगाए तब जनेऊ कमर से ऊपर के भाग आ जाए ताकि जनेऊ अपवित्र ना हो जाए |
 लिङ्गादि भाग को स्पर्श होकर | 

क्या सम्भोग के समय जनेऊ को पहनना चाहिए ?
आह्निक कारिका कहती है 
उपवीतं सदाधार्य मैथुने तुपवीतिवत ||   
मैथुन के समय अवश्य जनेऊ को पहने रखना है जैसे पहनते है | 

मनुभगवान कहते है 
ऊर्ध्वं नाभेर्मेध्यतरः पुरुषः परिकीर्तितः | 
तस्मान्मेद्यं त्वस्य मुखमुक्तं स्वयम्भुवा || 
पुरुष नाभि से ऊपर पवित्र है | नाभि के निचे अपवित्र है | 
नाभि का निचला भाग मलमूत्र धारक होने से शौच के समय अपवित्र होता है | 
इस लिए मलमूत्र त्यागते समय जनेऊ को कान पे लपेटना चाहिए | 

जनेऊ को दाहिने कान पे ही क्यों लपेटते है ?
गोभिलगृह्य संग्रह का कथन है 
मरुतः सोम इन्द्राग्नि मित्रावरुणौ तथैव च | 
एते सर्वे च विप्रश्च श्रोत्रे तिष्ठन्ति दक्षिणे || 
वायु,चन्द्रमा,अग्नि,मित्र,वरुण,ये सभी देवता ब्राह्मण के दाए कान में रहते है | 
इसलिए दक्षिण अर्थात दाए कान पे ही जनेऊ को लपेटना चाहिए | 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो कान के मूल भाग पर जनेऊ को लपेटने से एक दबाव बनता है कान पर | जिसके कारण ह्रदय मजबूत बनता है और ह्रदय में रक्तसञ्चार सही मात्रा में पहुँचता है | ह्रदय रोगो से बचा जाता है | 

आयुर्वेद के अनुसार दाहिने कान से गुजरनेवाली नाड़ियाँ मलमूत्र के द्वार तक पहुँचती है | जिस पर दबाव बनने से मलमूत्र त्याग कारण आसान हो जाता है | अर्थात मलमूत्र सरलता से हो जाता है | 


karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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