दुर्गाजीके सोलह नाम | Durgaji ke 16 Naam |

 

दुर्गाजीके सोलह नाम

दुर्गाजीके सोलह नाम

नारदजी बोले
ब्रह्मन, मैंने अत्यन्त अद्भुत सम्पूर्ण उपाख्यानोंको सुना |
अब दुर्गाजीके उत्तम उपाख्यानको सुनना चाहता हूँ |
वेदकी कौथुमी शाखामें जो

दुर्गा
नारायणी
ईशाना
विष्णुमाया
शिवा
सती
नित्या
सत्या
भगवती
सर्वाणी
सर्वमङ्गला
अम्बिका
वैष्णवी
गौरी
पार्वती
और
सनातनी

दुर्गा 16 नामावली

ॐ दुर्गायै नमः |
ॐ नारायण्यै  नमः |
ॐ ईशान्यै नमः |
ॐ विष्णुमायायै नमः |
ॐ शिवायै नमः |
ॐ सत्यै नमः |
ॐ नित्यायै नमः |
ॐ सत्यायै नमः |
ॐ भगवत्यै नमः |
ॐ सर्वाण्यै नमः |
ॐ सर्वमङ्गलायै नमः |
ॐ अम्बिकायै नमः |
ॐ वैष्णव्यै नमः |
ॐ गौर्यै नमः |
ॐ पार्वत्यै नमः |
ॐ सनातन्यै नमः | 
 
ये सोलह नाम बताये गये हैं, वे सबके लिये कल्याणदायक हैं |
वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ नारायण, इन सोलह नामोंका जो उत्तम अर्थ है,
वह सबको अभीष्ट है | उसमें सर्वसम्मत वेदोक्त अर्थ को आप बताइये |
पहले किसने दुर्गाजीकी पूजा की है ?
फिर दूसरी, तीसरी और चौथी बार किन किन लोगोंने उनका पूजन किया है ?

श्री नारायणने कहा
देवर्षे, भगवान् विष्णुने वेदमें इन सोलह नामोंका अर्थ किया है, 
तुम उसे जानते हो तो भी मुझसे पुनः पूछते हो |
अच्छा, मैं आगमोंके अनुसार उन नामोंका अर्थ कहता हूँ |
दुर्गा शब्दका पदच्छेद ये है,

दुर्गा + आ |
दुर्ग शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्धन, कर्म शोक, दुःख, नरक, यमदण्ड, जन्म,
महान् भय और अत्यन्त रोगके अर्थमें आता है तथा आ शब्द हन्ता का वाचक है |
जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदिका हनन करती है,
उसे दुर्गा कहा गया है |

यह दुर्गा यश, तेज, रुप और गुणोंमें नारायणके समान है तथा
नारायणकी ही शक्ति है |
इसलिये नारायणी कही गयी है |
ईशानका पदच्छेद इस प्रकार है |

ईशान + आ |
ईशान शब्द सम्पूर्ण सिद्धियोंके अर्थमें प्रयुक्त होता है और
आ शब्द दाताका वाचक है |
जो सम्पूर्ण सिद्धियोंको देनेवाली है, वह देवी ईशाना कही गयी है |

पूर्वकालमें सृष्टिके समय परमात्मा विष्णुने मायाकी सृष्टि की थी और अपनी उस मायाद्वारा सम्पूर्ण विश्वको मोहित किया |
वह मायादेवी विष्णुकी ही शक्ति है,
इसलिये विष्णुमाया कही गयी है |
शिवा शब्दका पदच्छेद इस प्रकार है,

शिवा + आ |
शिव शब्द शिव एवं कल्याण अर्थमें प्रयुक्त होता है तथा आ शब्द प्रिय और
दाता  अर्थमें | वह देवी कल्याणस्वरुपा है, शिवदायिनी है और शिवप्रिया है,
इसलिये शिवा कही गयी है |

देवी दुर्गा सद्बुद्धिकी अधिष्ठात्री देवी हैं,
प्रत्येक युगमें विद्यमान हैं तथा पतिव्रता एवं सुशीला हैं |
इसलिए उन्हें सती कहते हैं |

जैसे भगवान् नित्य हैं, उसी तरह भगवती भी नित्या हैं |
प्राकृत प्रलयके समय वे अपनी मायासे परमात्मा श्री कृष्णमें तिरोहित रहती हैं |
ब्रह्मासे लेकर तृण अथवा कीटपर्यन्त सम्पूर्ण जगत् कृत्रिम होनेके कारण मिथ्या ही है,
परंतु दुर्गा सत्यस्वरुपा हैं |
जैसे भगवान् सत्य हैं, उसी तरह प्रकृतिदेवी भी सत्या हैं |

सिद्ध, ऐश्वर्य आदिके अर्थमें भग शब्दका प्रयोग होता है, ऐसा समझना चाहिये |
वह सम्पूर्ण सिद्ध, ऐश्वर्यरुप भाग प्रत्येक युगमें जिनके भीतर विद्यमान है,
वे देवी दुर्गा भगवती कही गयी हैं |

जो विश्वके सम्पूर्ण चराचर प्राणियोंको जन्म, मृत्यु, जरा आदिकी तथा मोक्षकी भी
प्राप्ति कराती हैं,
वे देवी अपने इसी गुणके कारण सर्वाणी कही गयी हैं |

मङ्गल शब्द मोक्षका वाचक है और आ शब्द दाताका |
जो सम्पूर्ण मोक्ष देती हैं, वे ही देवी सर्वमङ्गला हैं |
मङ्गल शब्द हर्ष, सम्पत्ति और कल्याणके अर्थमें प्रयुक्त होता है |
जो उन सबको देती हैं, वे ही देवी सर्वमङ्गला नामसे विख्यात हैं |

अम्बा शब्द माताका वाचक है तथा वन्दन और पूजन अर्थमें भी अम्ब शब्दका प्रयोग होता है | वे देवी सबके द्वारा पूजित और वन्दित हैं तथा तीनों लोकोंकी माता हैं, इसलिये अम्बिका कहलाती हैं |

देवी श्री विष्णुकी भक्ता, विष्णुरुपा तथा विष्णुकी शक्ति हैं |
साथ ही विष्णुरुपा तथा विष्णुकी शक्ति हैं |
साथ ही सृष्टिकालमें विष्णुके द्वारा ही उनकी सृष्टि हुई है |
इसलिये उनकी वैष्णवी कहा जाता है |

गौरी शब्द पिले रंग, निर्लिप्त एवं निर्मल परब्रह्म परमात्माके अर्थमें प्रयुक्त होता है |
उन गौरी शब्दवाच्य परमात्माकी वे शक्ति हैं,
इसलिये वे गौरी कही गयी हैं |
भगवान् शिव सबके गुरु हैं और देवी उनकी सटी साध्वी प्रिया शक्ति हैं |
इसलिये गौरी कही गयी है |
श्री कृष्ण ही सबके गुरु हैं और देवी उनकी माया हैं |
इसलिये भी उनको गौरी कहा गया है |

पर्व शब्द तिथिभेद तथा अन्यान्य भेद अर्थमें प्रयुक्तहोता है तथा ती शब्द ख्यातिके होनेसे उन देवीकी पार्वती संज्ञा है |
पर्वत शब्द महोत्सव विशेषके अर्थमें आता है |
उसकी अधिष्ठात्री देवी होनेके नाते उन्हें पार्वती कहा गया है |
वे देवी पर्वत की पुत्री हैं |
पर्वतपर प्रकट हुई हैं तथा पर्वतकी अधिष्ठात्री देवी हैं |
इसलिये भी उन्हें पार्वती कहते हैं | 

सना का अर्थ है सर्वदा और तनी का अर्थ है विद्यमाना |
सर्वत्र और सब कालमें विद्यमान होनेसे वे देवी सनातनी कही गयी हैं |

महामुने आगमोंके अनुसार सोलह नामोंका अर्थ बताया गया |
अब देविका वेदोक्त उपाख्यान सुनो |
पहले पहल परमात्मा श्री कृष्णने सृष्टिके आदिकालमें गोलोकवर्ती वृन्दावनके रासमण्डलमें देवीकी पूजा की थी |
दूसरी बार मधु और कैटभसे भय प्राप्त होनेपर ब्रह्माजीने उनकी पूजा की |
तीसरी बार त्रिपुरारि महादेवीने त्रिपुरसे प्रेरित होकर देविका पूजन किया था |
चौथी बार पहले दुर्वासाके शापसे राज्यलक्ष्मीसे भ्रष्ट हुए देवराज इन्द्रने भक्तिभावके साथ देवी भगवती सतीकी समाराधना की थी |
तबसे मुनीन्द्रों, सिद्धेन्द्रों, देवताओं तथा श्रेष्ठ महर्षियोंद्वारा सम्पूर्ण विश्वमें सब ओर और सदा देवीकी पूजा होने लगी |

मुने पूर्वकालमें सम्पूर्ण देवताओंके तेजःपञ्जसे देवी प्रकट हुई थीं |
उस समय सब देवताओंने अस्त्र शस्त्र और आभूषण दिये थे |
उन्हीं दुर्गादेवीने दुर्ग आदि दैत्योंका वध किया और देवताओंको अभीष्ट
वरके साथ स्वराज्य दिया |
दूसरे कल्पमें महात्मा राजा सुरथने, जो मेधस् ऋषिके शिष्य थे, सरिताके तटपर
मिट्टीकी मूर्तिमें देवीकी पूजा की थी |
उन्होंने वेदोक्त सोलह उपचार अर्पित करके विधिवत् पूजन और ध्यानके पश्चात् कवच धारण किया तथा परिकार नामक स्तुति करके अभीष्ट वर पाया |
इसी तरह उसी सरिताके तरपर उसी मृण्मयी मूर्तिमें एक वैश्याने भी देवीकी पूजा करके मोक्ष प्राप्त किया |
राजा और वैश्यने नेत्रोंसे आँसू बहाते हुए दोनों हाथ जोड़कर देवीकी स्तुति की और उनकी उस मृण्मयी प्रतिमाका नदीके निर्मल गम्भीर जलमें विसर्जन कर दिया |
वैसी मृण्मयी प्रतिमाको जलमग्न हुई देख राजा और वैश्य दोनों रो पड़े और वहाँसे अन्यत्र चले गये |
वैश्यने देह त्याग करके जन्मान्तरमें पुष्करतीर्थमें दुष्कर तपस्या की और
दुर्गादेवीके वरदानसे वे गोलोकधाममें चले गये |
राजा अपने निष्कण्टक राज्यको लौट गये और वहाँ सबके आदरणीय होकर
बलपूर्वक शासन करने लगे |
उन्होंने साठ हजार वर्षोंतक राज्य भोग किया |
तत्पश्चात् अपनी पत्नी तथा राज्यका भार पुत्रको सौंपकर वे कालयोगसे पुष्करमें तप करके दूसरे जन्ममें सावर्णि मनु हुए |
वत्स, मुनिश्रेष्ठ, इस प्रकार मैंने आगमोंके अनुसार दुर्गोपाख्यानका संक्षेपसे वर्णन किया |
अब तुम और क्या सुन्ना चाहते हो ?
तदन्तर नारदजीके पूछनेपर भगवान् नारायणने ताराकी कथा कही और चैत्रतनय राजा अधिरथसे राजा सुरथकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग सुनाया |

|| अस्तु ||
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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