आदिगौ सुरभीदेवीका उपाख्यान | Aadigou Surbhidevika Upakhyan |

 

आदिगौ सुरभीदेवीका उपाख्या

आदिगौ सुरभीदेवीका उपाख्यान



नारदजीने पूछा, ब्रह्मन्, वह सुरभीदेवी कौन थी, जो गोलोकसे आयी थी ?
मैं उसके जन्म और चरित्र सुनना चाहता हूँ |

भगवान् नारायण बोले, नारद देवी सुरभी गोलोकमें प्रकट हुई |
वह गौओंकी अधिष्ठात्री देवी, गौओंकी जननी तथा सम्पूर्ण गौओंमें प्रमुख है |
मुने, मैं सबसे पहली सृष्टिका प्रसङ्ग सुना रहा हूँ,
जिसके अनुसार पूर्वकालमें वृन्दावनमें उस सुरभीका ही जन्म हुआ था |

एक समयकी बात है | गोपाङ्गनाओंसे घिरे हुए राधापति भगवान् श्रीकृष्ण कौतूहलवश श्रीराधाके साथ पुण्य वृन्दावनमें गये |
वहाँ वे विहार करने लगे |
उस समय कौतुकवश उन स्वेच्छामय प्रभुके मनमें सहसा दूध पीनेकी इच्छा जाग
उठी | तब भगवान्ने अपने वामपार्श्वसे लीलापूर्वक सुरभी गौको प्रकट किया |
उसके साथ बछड़ा भी था |
वह दुग्धवती थी | उस सवत्सा गौको सामने देख सुदामने एक रत्नमय पात्रमें उसका
दूध दुहा | वह दूध सुधासे भी अधिक मधुर तथा जन्म और मृत्युको दूर करनेवाला था |
स्वयं गोपिपति भगवान् श्रीकृष्णने उस गरम गरम स्वादिष्ट दुधको पीया |
फिर हाथसे छूटकर वह पात्र गिर पड़ा और दूध धरतीपर फैल गया |
उस दूधसे वहाँ एक सरोवर बन गया |
उसकी लंबाई और चौड़ाई सब ओरसे सौ सौ योजन थी |
गोलोकमें वह सरोवर क्षीरसरोवर नामसे प्रसिद्ध हुआ है |
गोपिकाओं और श्रीराधाके लिये वह क्रीड़ा सरोवत बन गया |
भगवानकी इच्छासे उस क्रीड़ावापीके घाट तत्काल अमूल्य दिव्य रत्नोंद्वारा निर्मित हो गये | उसी समय अकस्मात् असंख्य कामधेनु प्रकट हो गयीं |
जिनकी वे गौएँ थीं, उतने ही बछड़े भी उस सुरभी गौके रोमकूपसे निकल आये |
फिर उन गौओंके बहुत से पुत्र पौत्र भी हुए, जिनकी संख्या नहीं की जा सकती |
यों उस सुरभी देवीसे गौओंकी सृष्टि कही गयी, जिससे सम्पूर्ण जगत् व्याप्त है |

मुने, पूर्वकालमें भगवान् श्रीकृष्णने देवी सुरभीकी पूजा की थी |
तत्पश्चात् त्रिलोकीमें उस देवीकी दुर्लभ पूजाका प्रचार हो गया |
दीपावलीके दूसरे दिन भगवान् श्रीकृष्णकी आज्ञासे देवी सुरभीकी पूजा सम्पन्न हुई थी | यह प्रसङ्ग मैं अपने पिता धर्मके मुखसे सुन चूका हूँ |
महाभाग, देवी सुरभीका ध्यान, स्तोत्र, मूलमन्त्र तथा पूजाकी विधिका वेदोक्त क्रम मैं तुमसे कहता हूँ, 
सुनो, ॐ सुरभ्यै नमः सुरभीदेवीका यह षडक्षर मन्त्र है |
एक लाख जप करनेपर मन्त्र सिद्ध होकर भक्तोंके लिये कल्पवृक्षका काम करता है |
ध्यान और पूजन यजुर्वेदमें सम्यक् प्रकारसे वर्णित हैं |
जो ऋद्धि, वृद्धि, मुक्ति और सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाली हैं, जो लक्ष्मीस्वरुपा, श्रीराधाकी सहचरी, गौओंकी अधिष्ठात्री, गौओंकी आदिजननी, पवित्ररुपा, पूजनीया, भक्तोंके अखिल मनोरथ सिद्ध करनेवाली हैं तथा जिनसे यह सारा विश्व पावन बना है, उन भगवती सुरभीकी मैं उपासना करता हूँ |
कलश, गायके मस्तक, गौओंके बाँधनेके खंभे, शालग्रामकी मूर्ति, जल अथवा अग्निमें देवी सुरभीकी भावना करके द्विज इनकी पूजा करें |
जो दीपमालिकाके दूसरे दिन पूर्वाह्णकालमें भक्तिपूर्वक भगवती सुरभीकी पूजा करेगा, वह जगतमें पूज्य हो जायेगा |

एक बार वाराककल्पमें देवी सुरभीने दूध देना बंद कर दिया | उस समय त्रिलोकमें दूधका अभाव हो गया था | तब देवता अत्यन्त चिन्तित होकर ब्रह्मलोकमें गये और ब्रह्माजीकी   स्तुति करने लगे | तदनन्तर ब्रह्माजीकी आज्ञा पाकर इन्द्रने देवी सुरभीकी स्तुति आरम्भ की |

इन्द्रने कहा, देवी एवं महादेवी सुरभीको बार बार नमस्कार है | जगदम्बिके, तुम गौओंकी बीजस्वरुपा हो, तुम्हें नमस्कार है |
तुम श्रीराधाको प्रिय हो, तुम्हें नमस्कार है |
तुम लक्ष्मीकी अंशभूता हो, तुम्हें बार बार नमस्कार है |
श्रीकृष्ण प्रियाको नमस्कार है |
गौओंकी माताको बार बार नमस्कार है |
जो सबके लिये कल्पवृक्षस्वरुपा तथा श्री, धन और वृद्धि प्रदान करनेवाली हैं,
उन भगवती सुरभीको बार बार नमस्कार है |
शुभदा, प्रसन्ना और गोप्रदायिनी सुरभी देवीको बार बार नमस्कार है |
यश और कीर्ति प्रदान करनेवाली धर्मज्ञा देवीको बार बार नमस्कार है |

इस प्रकार स्तुति सुनते ही सनातनी जगज्जननी भगवती सुरभी संतुष्ट और प्रसन्न हो उस ब्रह्मलोकमें ही प्रकट हो गयीं | देवराज इन्द्रको परम दुर्लभ मनोवाञ्छित वर देकर वे पुनः गोलोकको चली गयीं | देवता भी अपने अपने स्थानोंको चले गये |
नारद, फिर तो सारा विश्व सहसा दूधसे परिपूर्ण हो गया |
दूधसे घृत बना और घृतसे यज्ञ सम्पन्न होने लगे तथा उनसे देवता संतुष्ट हुए |

जो मानव इस महान् पवित्र स्तोत्रका भक्तिपूर्वक पथ करेगा, वह गोधनसे सम्पन्न, प्रचुर सम्पत्तिवाला, परम यशस्वी और पुत्रवान् हो जायेगा |
उसे सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करने तथा
अखिल यज्ञोंमें दीक्षित होनेका फल सुलभ होगा |
ऐसा पुरुष इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें
भगवान् श्रीकृष्णके धाममें चला जाता है |
चिरकालतक वहाँ रहकर भगवानकी सेवा करता रहता है |
नारद, उसे पुनः इस संसारमें नहीं आना पड़ता |

|| अस्तु || 









 
karmkandbyanandpathak

नमस्ते मेरा नाम आनंद कुमार हर्षद भाई पाठक है । मैंने संस्कृत पाठशाला में अभ्यास कर (B.A-M.A) शास्त्री - आचार्य की पदवी प्राप्त की हुईं है । ।। मेरा परिचय ।। आनंद पाठक (आचार्य) ( साहित्याचार्य ) ब्रह्मरत्न अवार्ड विजेता (2015) B.a-M.a ( शास्त्री - आचार्य ) कर्मकांड भूषण - कर्मकांड विशारद ज्योतिष भूषण - ज्योतिष विशारद

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